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ग़ज़ल : पेड़ ऊँचा है, न इसकी छाँव ढूँढो

बह्र : २१२२ २१२२ २१२२

कामयाबी चाहिए तो पाँव ढूँढो,

पेड़ ऊँचा है, न इसकी छाँव ढूँढो।

शहर से जो माँग लोगे वो मिलेगा,

शर्त इतनी है यहाँ मत गाँव ढूँढो।

जीत लोगे युद्ध सब, इतना करो तुम,

जो न हो नियमों में ऐसा दाँव ढूँढो।

दौड़ते रहना, यहाँ जिन्दा रहोगे,

भीड़ में मत बैठने को ठाँव ढूँढो।

नभ मिलेगा, गर करो हल्का स्वयं को,

और उड़ने के लिए पछियाँव ढूढो।

-

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by rajesh kumari on May 22, 2014 at 9:52am

very nice ghazal 

Comment by Sarita Bhatia on May 22, 2014 at 9:21am

वाह बहुत खुबसूरत 

खूब निभाया काफिया 

Comment by बृजेश नीरज on May 21, 2014 at 3:21pm

वाह! बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!

Comment by Meena Pathak on May 21, 2014 at 12:03pm

क्या बात है ... लाजवाब 

Comment by Shyam Narain Verma on May 21, 2014 at 11:52am
बहुत सुन्दर गजल।  ढेरों दाद कुबूल करें। सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 21, 2014 at 11:36am

नभ मिलेगा गर करो हल्का स्वयं  को ---

वाह  शुभान  अल्लाह i अति सुन्दर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 21, 2014 at 10:04am

वाह आदरणीय धर्मेन्द्र जी, सफल जीवन के लिए श्लोकों की तरह हर अश'आर परिपक्वता से भरा हुआ, हार्दिक बधाइयाँ.......

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on May 20, 2014 at 10:52pm

niceee prastuti

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