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मैं कभी तुझसे बिछड़ने का न मंजर देखूँ

2122   2122  2122  22

मैं कभी तुझसे बिछुड़ने का न मंजर देखूँ

मछलियों से ना कभी ख़ाली समंदर देखूँ

 

कब जमीं आकाश दोनों इस जहाँ में मिलते

मैं ये  संगम तो सदा दिल के ही अन्दर देखूँ

 

हर सितारा  तेरी किस्मत का बुलंदी पर हो

 मैं  न कोई हार से टूटा सिकंदर देखूँ

 

झेल लूँ मैं वार  खुद तेरी परेशानी के  

जीस्त में गड़ता हुआ ग़म का न खंजर देखूँ

 

जिंदगी में काश कोई दिन न आये ऐसा

मैं मुहब्बत की जमीं की कोख  बंजर देखूँ

 

इक सदाकत ,रूह की पाकीज़गी हो जिसमे

मैं तेरे दिल में वही चाहत निरंतर देखूँ 

------------------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 8, 2014 at 11:11am

आ० उमेश कटारा जी ,ग़ज़ल पर आपकी होंसला वर्धन करती हुई प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ .

Comment by umesh katara on June 8, 2014 at 8:16am

जिन्दगी में काश कोई दिन न आये ऐसा

मैं मुहब्बत की जमीं की कोख बंजर देखूँ...............वाहहहहहहहहहहहहह वाहहहहहहहहह क्या गजल कही है राजेश कुमारी जी बहुत बहुत बधायी आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 7, 2014 at 3:18pm

आ० डॉ.आशुतोष जी, ग़ज़ल पर आपकी नजरे इनायत और सराहना ने मन ऊर्जा से भर दिया मेरा लिखना सफल हुआ तहे दिल से आभारी हूँ| 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 3:15pm

कब जमीं आकाश दोनों इस जहाँ में मिलते...सिर्फ भ्रम होता है 

मैं ये  संगम तो सदा दिल के ही अन्दर देखूँ....लाजबाब 

जिंदगी में काश कोई दिन न आये ऐसा

मैं मुहब्बत की जमीं की कोख  बंजर देखूँ....सुंदर पंक्तियाँ ...

आदरणीया राज जी ..आपकी उम्दा ग़ज़लों की श्रेणी में शामिल इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 7, 2014 at 3:14pm

प्रिय प्राची जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ आपका  दिल की गहराइयों से हार्दिक आभार. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 7, 2014 at 2:56pm

मन में प्यार संजोए बहुत कोमल भावनाओं को शब्द देते सभी अशआर बहुत सुन्दर बने हैं 

जिंदगी में काश कोई दिन न आये ऐसा

मैं मुहब्बत की जमीं की कोख  बंजर देखूँ....बहुत सुन्दर 

हार्दिक बधाई आदरणीया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2014 at 10:11am

आ० नीलेश जी, ग़ज़ल की सराहना हेतु तहे दिल से आभारी हूँ. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2014 at 10:10am

प्रिय जितेन्द्र गीत भैय्या इस होंस्लाफ्जाई के लिए बहुत- बहुत शुक्रिया,ग़ज़ल सार्थक हुई.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2014 at 10:08am

आ० सुरेन्द्र कुमार शुक्ला जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई दिल से आभार आपका. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 6, 2014 at 9:02am

बहुत खूब ..वाह वाह 

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