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ये नुमायाँ है किसे क्या चाहिये - ग़ज़ल

2122/ 2122/ 212

ये नुमायाँ है किसे क्या चाहिये

बेख़िरद को सिर्फ़ चेहरा चाहिये                      बेख़िरद =कम अक्ल

 

हो गया है ताज़िरों का ये वतन                        ताज़िर=व्यापारी

खुश हुये वो जिनको वादा चाहिये

 

बच तो आयें लहरों से अहले जिगर

बस उन्हें कोई किनारा चाहिये

 

तख़्त पर जिसने बिठाया उनका कर्ज़

जानो दिल से अब चुकाना चाहिये

 

आप भी हँस लीजिये इस बात पर

झूठे को अब काम सच्चा चाहिये

 

बातों की परवाज़ ऊँची थी बहुत

अब ज़मीं पर उनको आना चाहिये

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by vijay nikore on June 19, 2014 at 12:52pm

बहुत ही अच्छी गज़ल है, आदरणीय शिज्जु जी।

Comment by Sushil Sarna on June 19, 2014 at 12:41pm

बातों की परवाज़ ऊँची थी बहुत
अब ज़मीं पर उनको आना चाहिये आआआआआह शिज्जु भाई क्या शेर है .... हर शेर लाआआआआआआअजवाब है .... इस ग़ज़ल पर हमारी दिली दाद कबूल फरमाएं आदरणीय


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 18, 2014 at 8:10pm

आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार

Comment by वेदिका on June 18, 2014 at 8:01pm
सार्थक ग़ज़ल हुयी है
बातों की परवाज़ ऊँची थी बहुत
अब ज़मीं पर उनको आना चाहिये// बेहद प्रभावशाली शेर .... बहुत खूब
शुभकामनायें आo शिज्जू जी!

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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 18, 2014 at 7:46pm

आदरणीय नरेन्द्र सिंह चौहान सर रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 18, 2014 at 7:45pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 18, 2014 at 7:44pm

आदरणीया राजेश दीदी आपका आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 18, 2014 at 7:44pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 18, 2014 at 7:44pm

आदरणीय लक्ष्मण सर आपका हार्दिक आभार

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2014 at 12:52pm

शिज्जू भाई

आप हमेशा अच्छी गजल लिखते है i इस बार आपका प्रासंगिक मक्ता दिल को छू गया i बहुत बधाई  i

कृपया ध्यान दे...

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