For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -चाँद छुपकर अँधेरों में रोता रहा

212      212    212     212

रात जगता रहा दिन में सोता रहा

चाँद के ही  सरीखे से होता रहा

 

बादलों की हुकूमत हुई चाँद पर

चाँद छुपकर अँधेरों में रोता रहा

 

उल्टे रस्ते ही जब मुझको भाने लगे

बारी बारी से अपनों को खोता रहा

 

रस्म मैंने निभायी नहीं है मगर

दिल में रिश्तों को अपने संजोता रहा

 

जो न मांगा मिला मुझको सौगात में

जिसको चाहा वो मुश्किल से होता रहा

 

मैंने अपने गले से लगाया जिसे

पीठ पर वो ही खंजर चुभोता रहा

 

अमित कुमार दुबे मौलिक व अप्रकाशित

Views: 825

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमित वागर्थ on July 10, 2014 at 6:39pm

आदरणीय सुशील जी आपका हार्दिक आभार

Comment by अमित वागर्थ on July 10, 2014 at 6:38pm

आदरणीय नीलेश जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका

Comment by अमित वागर्थ on July 10, 2014 at 6:38pm

आ0 राजेश जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका

Comment by अमित वागर्थ on July 10, 2014 at 6:37pm

आदरणीय narendrasinh chauhan जी बेहद शुक्रिया आपका

Comment by अमित वागर्थ on July 10, 2014 at 6:36pm

आदरणीय मदन मोहन जी आपका हार्दिक धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 10, 2014 at 8:14am

बहुत बढ़िया अमित भाई  इस रचना के लिये दाद कुबूल फरमायें, रचना पर कुछ सार्थक चर्चाएँ भी हुई हैं उनपर भी थोड़ा विचार करें शुभकामनाएँ l

Comment by Sushil Sarna on July 9, 2014 at 7:54pm

बादलों की हुकूमत हुई चाँद पर
चाँद छुपकर अँधेरों में रोता रहा .... वाआआआआह बेहद उम्दा शेर .... सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 9, 2014 at 7:32pm

बहुत ख़ूब ...आपने बह्र 2122      1221        2212 ऐसे लिखी है ..मात्राए यही हैं लेकिन अरकान 212/212/212/212 ऐसा लिखेंगे 
बाक़ी आ. राजेश कुमारी जी ने सुझाव दिए हैं वो गौर करने जैसे हैं ...सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 9, 2014 at 5:39pm

बादलों की हुकूमत हुई चाँद पर

चाँद छुपकर अँधेरों में रोता रहा

उल्टे रस्ते ही जब मुझको भाने लगे

बारी बारी से अपनों को खोता रहा

 अच्छे अशआर हुए हैं बहुत- बहुत बधाई अच्छी ग़ज़ल है मतले के उला  और बेहतर कर सकते हैं   रात के बाद भर या को  की कमी खल रही है 

Comment by Madan Mohan saxena on July 9, 2014 at 3:50pm

उल्टे रस्ते ही जब मुझको भाने लगे
बारी बारी से अपनों को खोता रहा

बहुत सुन्दर गजल ,हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' joined Admin's group
Thumbnail

धार्मिक साहित्य

इस ग्रुप मे धार्मिक साहित्य और धर्म से सम्बंधित बाते लिखी जा सकती है,See More
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"गजल (विषय- पर्यावरण) 2122/ 2122/212 ******* धूप से नित  है  झुलसती जिंदगी नीर को इत उत…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सादर अभिवादन।"
16 hours ago
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Jun 7

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service