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चारो तरफ चीख़ पुकार मची हुई थी, सभी बदहवास भाग रहे थे । जिधर देखो आग ही आग । ख़ून और मांस जगह जगह बिखरा पड़ा था |  

थोड़ी ही देर में इलाक़ा पुलिस और मीडिया के लोगों से भर गया । बम डिस्पोजल स्कवॉड भी आ गया । पूरे शहर में तनाव फ़ैल गया क्योंकि विस्फ़ोट की जगह एक धर्मस्थल के पास थी और अफ़वाहें पूरे जोरों पर थीं ।

पर इन सबसे बेख़बर, एक बूढ़ा भिखारी अपनी जगह पर शांत बैठा हुआ था । किसी को नहीं पता था कि वो किस मज़हब का है , सबके आगे हाँथ फैलाना और कुछ मिल जाने पर दुआ देना, बस इतना ही जानता था वो । बड़े और बिखरे हुए बाल और दाढ़ी उसकी पहचान थे । लेकिन आज उसी मोहल्ले के एक कोने में कुछ लोग आपस में फ़ुसफ़ुसा रहे थे "वो जरूर उसी मज़हब का है, मौका है इस विस्फ़ोट का बदला ले लेते हैं ।

अगले दिन लोगों ने देखा कि इंसानियत का एक बार फिर खून हो गया था |

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on August 10, 2014 at 12:24am

आभार डॉ गोपाल नारायण जी..


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Comment by rajesh kumari on August 9, 2014 at 9:07pm

मन को झकझोरती लघु कथा ...

Comment by Shubhranshu Pandey on August 9, 2014 at 8:14pm

आदरणीय विनय जी, 

सुन्दर कथा. विस्फ़ोट के बाद की घटनायें झकझोरती हैं.

भिखारी को भिखारी की तरह ही रहने दिया जाता तो अच्छा होता... बिखरे बाल और बडी दाढी एक खाका तैयार कर देते हैं..

सादर.

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 9, 2014 at 4:19pm
VINAY JEE AAPKE KATH SHILP NE ISE SAMVEDANSHEEL BANAYA I AAPKO BADHAYEE I

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