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"डाक्टर साहब , ये बच्ची हमें नहीं चाहिए", बोलते हुए उस महिला के आँखों में आँसू आ गए थे |

"देखो , बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं है और अब देर भी काफी हो गयी है , तुम्हारी जान को खतरा हो सकता है" |

" आप तो एबॉर्शन कर दीजिये , और कौन सी हमारे बेटे की उमर निकल गयी है" , सास ने ठन्डे स्वर में कहा । 

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on August 10, 2014 at 12:34pm

बहुत बहुत आभार सौरभजी..

Comment by विनय कुमार on August 10, 2014 at 12:33pm

आभार गिरिराज जी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 10, 2014 at 8:32am

बहुत दुखद , मैं  तो नीचता कहता हूँ | सुन्दर लघुकथा के लिए आपको बधाइयाँ |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 10, 2014 at 1:08am

ऐसी हृदयहीनता ! ..  लेकिन यही तो सारी समस्याओं की जड़ है.

अत्यंत सशक्त ढंग से प्रस्तुत हुई कथा के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विनयजी.

Comment by विनय कुमार on August 7, 2014 at 10:19pm

आभार जीतेन्द्र जी..

Comment by विनय कुमार on August 7, 2014 at 10:19pm

आभार डॉ गोपाल नारायण जी..

Comment by विनय कुमार on August 7, 2014 at 10:18pm

आभार सुभ्रांशुजी..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 7, 2014 at 12:12pm

बहुत ही बढ़िया लघुकथा. शायद अभी बहु कि जगह बेटी होती तो संवेदना कुछ और ही रहती. बधाई आपको आदरणीय विनय जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 7, 2014 at 11:35am

आह------

एक नारी की दूसरी नारी के प्रति इतनी संवेदनहीनता  i  उफ़ ---

विनय जी बहुत सुन्दर  और कम शब्दों में  i  बधाई हो !

Comment by Shubhranshu Pandey on August 7, 2014 at 9:16am

आदरणीय विनय जी, 

सास की ठंढी सांस ने उसके दिमाग और मन की आग को बता दिया...सुन्दर कथा..

सादर.

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