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नव गीत ////आबाद होंगे कब जीवन मरुस्थल !

सोचता रहता हूँ

उदासियो में घिरकर

प्रतिक्षण-प्रतिपल 

आबाद होंगे कब जीवन -मरुस्थल ?

 

काल की क्रूरता ने

मेरे प्रयासों को

आशा-उजासो को

जीवन-विकल्पों को  

कर डाला धूमिल

कर्म हुआ निष्काम

कार्य भी निष्फल

आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?

 

सूने शून्य जीवन में

नियति के बंधन से

करुणा से क्रंदन से

पूरे जो न हो पायें

स्वप्न हुए चंचल  

पंगु प्रेरणा के पग

शान्त और निश्चल

आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?

 

प्रातः की बेला ने

मुस्क्याते फूलो से

सरिता के  कूलों से

सन्देश भेजा यूँ

लहराकर कलकल

रुकना ही मरना है

चलता जा अविरल

आबाद होंगे तब जीवन-मरुस्थल !

 

(मौलिक व अप्रकाशित )

 

   

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 25, 2014 at 5:39pm

आदरणीय सौरभ जी

ह्रदय का सागर प्रशांत है i  सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 25, 2014 at 5:37pm

शशि पुरवार  जी

आपको कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ I  सादर i  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 25, 2014 at 5:35pm

जीतू भैया

आभारी हूँ प्रिय i आप हमेशा हौसला बढाते है i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 25, 2014 at 5:33pm

मीना पाठक

आपके प्रोत्साहन से ह्रदय को बल मिला i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 25, 2014 at 5:32pm

डा 0  विजय जी

आपका ह्रदय से आभार i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2014 at 4:31pm

बहुत खूब आदरणीय.

आपकी यह रचना प्रभावित करती है.

Comment by shashi purwar on August 24, 2014 at 6:43pm

बहुत सुन्दर रचना भाव अभिव्यक्ति हृदय को छू रही है

सूने शून्य जीवन में

नियति के बंधन से

करुणा से क्रंदन से

पूरे जो न हो पायें

स्वप्न हुए चंचल  

पंगु प्रेरणा के पग

शान्त और निश्चल

आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?

 हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 24, 2014 at 12:41pm

सूने शून्य जीवन में

नियति के बंधन से

करुणा से क्रंदन से

पूरे जो न हो पायें

स्वप्न हुए चंचल  

पंगु प्रेरणा के पग

शान्त और निश्चल

आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?

बहुत सुंदर रचना, दिल को छू जाते भाव. ह्रदय से बधाई आपको आदरणीय डा. गोपाल जी

Comment by Meena Pathak on August 24, 2014 at 12:39pm

प्रातः की बेला ने

मुस्क्याते फूलो से

सरिता के  कूलों से

सन्देश भेजा यूँ

लहराकर कलकल

रुकना ही मरना है

चलता जा अविरल

आबाद होंगे तब जीवन-मरुस्थल !.................बेहद उम्दा , बहुत बहुत बधाई रचना हेतु | सादर 

 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2014 at 11:54am
प्रातः की बेला ने
मुस्क्याते फूलो से
सरिता के कूलों से
सन्देश भेजा यूँ
लहराकर कलकल
रुकना ही मरना है
चलता जा अविरल
आबाद होंगे तब जीवन-मरुस्थल !
प्रेरक , आकर्षक , आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी।

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