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ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए (ग़ज़ल 'राज')

12122 12122 1212

कभी लबों तक पँहुचता प्याला न छीनिए

 ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए  

 

यतीम का बचपना निराला न छीनिए

जमीन, दरगाह या शिवाला न छीनिए

 

बड़ी नहीं कोई चीज़ तहजीब से यहाँ      

नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए

 

नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता          

किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए

 

समान हक़ है मिला सभी को पढ़ाई का

गरीब बच्चों से  पाठ शाला न छीनिए 

 

जुड़े खुदा से वहाँ इबादत के तार हैं

उन उँगलियों में थिरकती माला न छीनिए

पुछल्ला ---

 यकीं नहीं है कि वो शराफ़त दिखायेगा 

 कभी किसी बेवड़े से हाला न छीनिए 

------------------------------

(मौलिक और अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2014 at 10:36am

आ० निलेश जी,ग़ज़ल पर आपकी सराहना व् परामर्श काबिले गौर है ये सुधार करने की कोशिश करुँगी ---जैसे बड़ी नहीं कोई चीज तहजीब से यहाँ ---शायद ये ठीक होगा ...इस और ध्यानाकर्षित करने का शुक्रिया
आपकी पुछल्ला परिक्रिया सुनकर हँसी आ गई ,खैर यदि इस प्रायोजन के तहत भी लिखती तो भी चलता एक नेक सलाह ही तो दे रही हूँ :)))))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2014 at 10:30am

चन्द्र शेखर पाण्डेय जी,मुझे ये पहले से ही पता था कि कुछ पाठक मतले पर जरूर बात करेंगे क्यूंकि लोगों की धारणा ही इस बात तक अटकी है की प्याला सिर्फ और सर्फ शराब/मय का होता है जबकि प्याला एक 'बर्तन' है कप या मग भी होता है खैर ये तो शब्द के अर्थ की बात रही अब लेखक ने इसका अर्थ किस प्रायोजन के तहत किया है वो उसका पक्ष है ..जो इस मतले के सानी से भी रिलेट हो सकता है अर्थात मुख तक पंहुचा प्याला ...चाय का भी हो सकता है ,किसी बच्चे के दूध का भी हो सकता है या जहर का भी हो सकता है :)))) मेरा मतलब या भाव ----सफलता से है अर्थात चरम तक पंहुची किसी की सफलता मत छीनिए. आपका दूसरा संशय ---न कोई तहजीब से बड़ी चीज है यहाँ ---तहजीब स्त्री लिंग है कोई शक नहीं किन्तु दोनों मिसरे स्वतंत्र हैं तो लिंग की बात नहीं आती ---आशा है मैं अपना पक्ष स्पष्ट कर पाई ,ग़ज़ल की समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आपका.
नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2014 at 10:18am

आ० डॉ. विजय शंकर जी,ग़ज़ल की सराहना के लिए आपको हार्दिक आभार.

Comment by Shyam Narain Verma on August 27, 2014 at 10:07am
" सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई ...... "
Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 27, 2014 at 8:38am

बहुत खूब ग़ज़ल है 
.
न कोई तहजीब से बड़ी चीज है यहाँ....आप तहजीब को बड़ा बता रही हैं लेकिन वाक्य न कोई तहज़ीब से शुरू हो रहा है ..इसे यदि संभव हो तो न कोई या उस नकारते हुए भाव के शब्द को पीछे रखने का प्रयास करें ..
ग़ज़ल के लिए बधाई ..
.
जैसे ग़ज़ल का पुछल्ला है वैसे ही कमेंट का पुछल्ला ..
यदि आपके मतले के ऊला पे सभी पत्नियाँ अमल करने लेगे तो कितने ही विश्व युद्ध थम जाएंगे.
वैश्विक शान्ति की दिशा में आपके प्रयास की मै सराहना करता हूँ :D
सादर  

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on August 27, 2014 at 12:54am

महनीया 

प्याला और निवाला ?? अगर रवायत को ध्यान मे रखा जाए तो दोनों उलट चीजें हैं एक विलासिता की चीज और दूसरी मूलभूत आवश्यकता। ये मेरी शंका मात्र है बाकी वरिष्ठ जनों से आग्रह है कि प्रकाश डालें //


न कोई तहजीब से बड़ी चीज है यहाँ     ( तहजीब से बड़ी चीज - स्त्रीलिंग )

नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए ( दुशाला पुल्लिंग है )

कृपया मार्गदर्शन करें 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 26, 2014 at 10:35pm
बहुत सुन्दर , कभी किसी गरीब के हाथ से निवाला न छीनिये , प्रशंसनीय , बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 26, 2014 at 9:02pm

प्रिय सविता मिश्रा जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका.  

Comment by savitamishra on August 26, 2014 at 7:06pm

खुबसुरत ....:)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 26, 2014 at 6:46pm

पवन कुमार जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका|

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