For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घर वो होता है -- डॉo विजय शंकर

घर वो होता है ,
जहां आपका सदैव
इन्तजार होता है ।
जहां आप जाते नहीं ,
आप , जहां भी जाते हैं ,
वहीँ से जाते हैं ।
घर न दूर होता है , न पास होता है ,
जहां से हम सारी दूरियां नापते हैं ,
घर वो होता है ।
घर वो होता है,
जहां माँ होती है ,
जहां से माँ आपको कहीं भी भेजे ,
आपका इन्तजार वहीँ करती होती है ।
माँ जननी होती है , जनम देती है ,
धरती पर लाती है , माँ घर बनाती है ,
माँ ही घर देती है ,जब तक माँ होती है ,
अपने सब बच्चों को ,
बांधे रहती है, जोड़े रहती है,
घर को बिखरने से रोके रहती है |
घर वो होता है ,
एक बार जो घर छूट जाये ,
एक बार जो घर टूट जाये ,
तो वो घर , फिर कहीं नहीं होता है ॥
बस , मन में होता है ,
दिल में होता है ,
यादों में होता है ,
पर हमेशा होता हैं ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 725

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 11, 2014 at 5:01am
प्रशस्ति के लिए धन्यवाद आदरणीय सलीम शेख जी ।
Comment by saalim sheikh on December 10, 2014 at 10:12pm

खूबसूरत नज़्म 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 10, 2014 at 9:09pm
Thank you very much dear Somesh ji , for liking the poem and accepting the views therein .
Regards .
Comment by somesh kumar on December 10, 2014 at 8:26pm

home the sweet home ! and it is mother who makes it complete ,good creation with beautiful meaning

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 10, 2014 at 7:51pm
Thank you Dear naval ji , thanks for liking the lines written and posted by me , the credit of all these lines entirely goes to you . And that is the beauty of your own poem, " न जाने क्यों " which inspired me instantly to compose it . With regards n good wishes .
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 10, 2014 at 7:43pm
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आपको रचना के भाव अच्छे लगे , आभार। वास्तव में यह एक तात्कालित (instant ) रचना है जो अपने ही साथी नवल किशोर सोनी जी की " न जाने क्यों " शीर्षक से लिखी एवं प्रस्तुत रचना को पढ़ते ही लिख कर पोस्ट कर दी गयी , इसमें कवित्त पर ध्यान कम , भाव पर अधिक गया। बस।
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 10, 2014 at 7:32pm
रचना को स्वीकृति प्रदान करने हेतु आभार , बधाई के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 10, 2014 at 7:29pm
प्रिय जीतेन्द्र जी , रचना के भाव आपको प्रभावित कर सके , यही इनका महत्व है , बधाई के लिए सादर धन्यवाद।
Comment by Naval Kishor Soni on December 10, 2014 at 7:03pm

Congratulation sir....................Really nice one


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 10, 2014 at 3:46pm

गद्यात्मक शैली में भावपूर्ण रचना कही है आ० डॉ विजय शंकर जी। लेकिन कविता वाला लालित्य इसमें कहीं गुम लग रहा है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
59 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
20 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
Wednesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service