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अतुकांत कविता : केसर के फूल (गणेश जी बागी)

अतुकांत कविता : केसर के फूल

चौक गया

यह देखकर 

स्कूल के फर्श पर

फैला गाढ़ा रंग
बिलकुल वैसा ही था
जैसा
कुछ वर्ष पहले था
मुंबई के प्लेटफॉर्म पर  
कोई अंतर नहीं
एकदम सुर्ख़ लाल रंग
उपजाऊ भूमि
बो दिया बारूद
इस उम्मीद में

कि .........
केसर फूलेंगे ।

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : सुकून

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Comment

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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 19, 2014 at 7:47am

बहुत खूब चंद शब्दों में आपने गहरी बात कह दी बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 19, 2014 at 1:17am
रक्ताभा का कुछ अलग ही पर सामयिक चित्रण , स्मृतियों को छीलता , भविष्य से अनभिज्ञ , सजीव सी पंक्तियाँ।
बधाई आदरणीय इंजीo गणेश जी बागी जी , इस प्रस्तुति के लिए , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 19, 2014 at 12:55am

आदरणीय   Er. Ganesh Jee "Bagi" सर बहुत सुन्दर और एक बड़े मर्म को व्यक्त करती रचना... इन बेहतरीन एवं  गज़ब की पंक्तियाँ के लिए हार्दिक बधाई 

उपजाऊ भूमि 
बो दिया बारूद 
इस उम्मीद में

कि .........
केसर फूलेंगे ।

Comment by Hari Prakash Dubey on December 19, 2014 at 12:50am

उपजाऊ भूमि 
बो दिया बारूद 
इस उम्मीद में

कि .........
केसर फूलेंगे ।...बहुत ही सुन्दरता से सन्देश प्रेषित कर दिया आपने आदरणीय "बागी "जी  !सादर !

 

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