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उनको अपने पास लिखूँ क्या?

उनको अपने पास लिखूँ क्या?
वो मेरे हैं ख़ास लिखूँ क्या?

तारीफ़ बहुत कर दी उनकी।
अपना भी उपहास लिखूँ क्या?

संत नहीं वह व्यभिचारी है।
उसका भी सन्यास लिखूँ क्या?

जिसने मेरा सबकुछ लूटा।
उसपे है विश्वास लिखूँ क्या?

जिसकी कोई नहीं कहानी।
उसका भी इतिहास लिखुँ क्या?

बूँद बूँद को तरसा है जो।
उससे पूँछो प्यास लिखुँ क्या?
************************
वज़्न_22 22 22 22
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 29, 2014 at 10:54pm

बूँद बूँद को तरसा है जो।
उससे पूँछो प्यास लिखुँ क्या?......आदरणीय रामशिरोमणि जी , सुन्दर रचना बहुत बहुत बधाई.!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 29, 2014 at 10:12pm

आदरणीय रामशिरोमणि जी बहुत अच्छी प्रस्तुति..... बहुत बहुत बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 10:00pm

आदरणीय रामशिरोमणि जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने बहुत बहुत बधाई

Comment by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 9:22pm
आदरणीय डॉ गोपाल जी हार्दिक आभार।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 9:21pm
प्रिय शरद भाई हार्दिक आभार
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2014 at 8:02pm

पाठक जी

बहुत अच्छी गजल कही आपने i सुन्दर i

Comment by SHARAD SINGH "VINOD" on December 29, 2014 at 6:46pm

जिसने मेरा सबकुछ लूटा।
उसपे है विश्वास लिखूँ क्या?..... क्या दर्शन है!!!... दिग्भ्रमित जन हेतु यह उक्ति आईना है|.. हर्दिक बधाई हो मेरे दिलकश अजीज !1

Comment by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 5:41pm
अनुराग भाई बहुत आभार आपका।।
Comment by Anurag Prateek on December 29, 2014 at 5:35pm

wah wah wah

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