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सारी दुनिया को तमाज़त से बचा लेते हैं
हम वह बादल हैं जो सूरज को छुपा लेते हैं

मेरे ख़ुश होने से कब उन को खुशी होती है
मेरे एहबाब मिरे ग़म का मज़ा लेते हैं

शैर कहने का हुनर सबको कहाँ मिलता हैं
यूँ तो क़व्वाल भी अशआर बना लेते हैं

कितना मासूम है देखो ज़रा फूलों का मिज़ाज
तिशनगी औस के क़तरों से बुझा लते हैं

मुद्दतों हम को सताता रहा तहज़ीब का ग़म
आज इतना है कि आँखों को झुका लेते हैं

------ समर कबीर

मौलिक / अप्रकशित

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Comment by ajay sharma on February 20, 2015 at 10:46pm

मुद्दतों हम को सताता रहा तहज़ीब का ग़म
आज इतना है कि आँखों को झुका लेते हैं.........wah wah wah 

Comment by Samar kabeer on February 4, 2015 at 2:47pm
मोहतरम जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये,"इनायत,करम,शुक्रिया,महरबानी|

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2015 at 1:28pm

मेरे ख़ुश होने से कब उन को खुशी होती है
मेरे एहबाब मिरे ग़म का मज़ा लेते हैं  ---  बढिया बात कही , सुन्दर ग़ज़ल हुई है , बधाइयाँ , आदरणीय ।

Comment by Samar kabeer on February 3, 2015 at 4:52pm
जनाब मोहन बेगोवाल जी ,ग़ज़ल पसंद करने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on February 3, 2015 at 4:49pm
ईआर.गणेश जी "बागी" जी,आदाब अर्ज़ करता हूँ ,आप को ग़ज़ल पसंद आई शुक्रिया,आप के लिये इतना ही कहूँगा कि "बहुत जी ख़ुश हुवा है तुम से मिलकर
अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जहाँ में"
Comment by Samar kabeer on February 3, 2015 at 4:39pm
जनाब ख़ुरशीद भाई आदाब,ग़ज़ल की तरीफ़ के लिये बहुत बहुत शुक्रिया |
Comment by मोहन बेगोवाल on February 3, 2015 at 11:26am

   समर कबीर जी, आप जी की गजल के सभी अशआर लाजवाब , मगर ये शे'र मुझे बुत ही सुंदर लगा 

मुद्दतों हम को सताता रहा तहज़ीब का ग़म
आज इतना है कि आँखों को झुका लेते हैं -बधाई हो 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 3, 2015 at 11:17am

//कितना मासूम है देखो ज़रा फूलों का मिज़ाज
तिशनगी ओस के क़तरों से बुझा लेते हैं//

वाह वाह, क्या मासूमियत है जनाब, इस मुलायमियत भरे अंदाज के साथ खुबसूरत शेर कहा है, अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, दाद कुबूल करें आदरणीय समर साहब.

Comment by khursheed khairadi on February 3, 2015 at 10:33am

मेरे ख़ुश होने से कब उन को खुशी होती है
मेरे एहबाब मिरे ग़म का मज़ा लेते हैं

शैर कहने का हुनर सबको कहाँ मिलता हैं
यूँ तो क़व्वाल भी अशआर बना लेते हैं

आदरणीय कबीर साहब ,सभी अशहार लासानी है |मेयारी और उम्दा ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद कबूल फरमावें |सादर अभिनन्दन |

Comment by Samar kabeer on February 2, 2015 at 10:13pm
जनाब विजय जी,आदाब,मैं आपकी सुख़न शनासी का क़ाइल हो गया,बहुत बहुत शुक्रिया |

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