For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- तू मेरे लिए है न अजनबी ( बराए इस्लाह )

न तो मंज़िलों की तलाश है, न ही रास्तों की तलाश है
जो सँवार दें मेरी रहगुज़र , उन्हीं रहबरों की तलाश है

तू मुआफ़ करना मुझे ख़ुदा, मुझे मस्जिदों से न वास्ता
मेरे ज़ेहन में तो हैं तितलियाँ, मुझे ख़ुशबुओं की तलाश है

मेरी ख़्वाहिशें हैं दबी दबी, मेरी ज़िन्दगी है बुझी बुझी
मेरा इश्क़ आब-ए-हयात अब, मुझे जन्नतों की तलाश है

तू मेरे लिए है न अजनबी, मैं तेरे लिए हूँ न अजनबी
है हमारे बीच जो राब्ता, उसे क़ुर्बतों की तलाश है

कोई पास मेरे भी बैठता, मेरे दर्द-ओ-ग़म कोई बाँटता
नहीं इस जहाँ में कोई मेरा, मुझे दोस्तों की तलाश है

मेरे ख़्वाब राख हैं हो चुके, मेरी चाह जीने की कम हुई
जो उबार लें मुझे अब ज़रा, उन्हीं हौसलों की तलाश है

मेरे दाग़-ए-दिल-ओ-जिगर को अब, सर-ए-बज़्म लोग हैं छेड़ते
मैं सुकूँन-ए-दिल को हूँ ढ़ूँढ़ता, मुझे मरहमों की तलाश है

मैं बयान अपना हूँ दे चुका, नहीं पास कहने को कुछ बचा
वो बरी करें या कि दें सज़ा, मुझे फैसलों की तलाश है

कभी वाइज़ों से मिला नहीं, कोई काम उनसे पड़ा नहीं
मुझे शौक दुख़्तरे रज़ का है, मुझे मैकदों की तलाश है

मुझे आज पढ़नी है इक ग़ज़ल, जो हर इक नज़र में हो लाजवाब
है रदीफ़ मुझको दिया हुआ, मुझे क़ाफ़ियों की तलाश है


-- दिनेश कुमार २३/०२/२०१५

( मौलिक व अप्रकाशित

Views: 732

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिनेश कुमार on February 23, 2015 at 8:36pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय भाई khursheed khairadi जी। हार्दिक आभार आप का हौसला अफजाई के लिए।
Comment by दिनेश कुमार on February 23, 2015 at 8:34pm
शुक्रिया pratibha tripathi जी, हौसला अफजाई के लिए आभार।
Comment by maharshi tripathi on February 23, 2015 at 5:28pm

आ. दिनेश कुमार जी मन को छूने वाली इस अच्छी गजल पर आपको हार्दिक बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2015 at 3:07pm

क्या बात है ! दिनेश भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है इस कठिन बह्र में ॥

न तो रास्तों की तलाश है, न ही मन्ज़िलों की तलाश है
जो सँवार दें मेरी रहगुज़र , उन्हीं रहबरों की तलाश है

मुझे आज पढ़नी है इक ग़ज़ल, जो हर इक नज़र में हो लाजवाब
है रदीफ़ मुझको दिया हुआ, मुझे क़ाफ़ियों की तलाश है   -- बहुत खूब सूरत शे र हुये हैं । बधाई आदरणीय ॥

है हमारे बीच जो राब्ता   ----- ये शेर भी बढिया है पर  राब्ता को 212 नहीं पढ सकते , मेरे खयाल से वास्ता कर लेना चहिये , या अस्ल हर्फ शायद राबिता है , अगर ऐसा है ति यही लिख लें ॥ जैसा आप उचित समझें ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 23, 2015 at 2:27pm

दिनेश जी

क्या उम्दा गजल लेकर आये है  i मोटी पिरोया हुई आपने i गुनीजन आपकी अनुशंसा करें i सादर i

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 23, 2015 at 10:53am
आदरणीय दिनेश कुमार जी, बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल , बधाई हेतु , सादर.
Comment by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 10:44am

कभी वाइज़ों से मिला नहीं, कोई काम उनसे पड़ा नहीं
मुझे शौक दुख़्तरे रज़ का है, मुझे मैकदों की तलाश है

मुझे आज पढ़नी है इक ग़ज़ल, जो हर इक नज़र में हो लाजवाब
है रदीफ़ मुझको दिया हुआ, मुझे क़ाफ़ियों की तलाश है

उम्दा ग़ज़ल हुई है आदरणीय दिनेश जी ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें |सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service