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आस का सुर्योदय (लघुकथा ) कान्ता राॅय

आस का सुर्योदय ( लघुकथा )


सर पर लकड़ी का गठ्ठर , पसीने से तर- बतर वो घर की ओर चली आ रही थी । माई का डर मन ही मन सता रहा था उसे । कल रात ही माई ने बोल दिया था कि ,

"चुल्हा चौका और घर का काम करके अगर समय मिले तो ही पढना छोरी ! "
माई भी क्या करें .. खेत पर बापू के संग काम पर जाना जो होता है !

आज सुबह सीतो अखबार लेकर आ गई थी ।

" देख तु जिले में प्रथम स्थान पर आई है ! " -- सीतो ने जैसे ही कहा , सुनते ही उसके खुशी से पैर , बदन सब काँप उठे थे ।

माई ने सीतो के हाथ से अखबार फेंक दिया तो वो जैसे सहम सी गई ।सीतो मुंह लटकाये उल्टे कदमों से वापस चली गई ।
और माँ ने भन्नाते हुए उसे डाँट कर कुआँ से पानी लाने भेज दिया । निराशा से भरी वह कुएँ की तरफ बढ़ चली ।

" माई , देख तो ...शाम हुई अब तक गाय नहीं आई चर कर ...! " खूंटे पर गाय बंधी ना देख वो पूछ बैठी ।

" अब खूंटे पर गाय नहीं , तेरे हाथों में लैपटॉप होगा छोरी । " बापू गर्व से छाती चौडी के साथ लैपटॉप लेकर देहरी से अंदर आते हुए बोल उठे । आस का सुर्योदय हो चुका था ।



कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 14, 2015 at 8:34am

 अब खूंटे पर गाय नहीं , तेरे हाथों में लैपटॉप होगा छोरी । " बापू गर्व से छाती चौडी के साथ लैपटॉप लेकर देहरी से अंदर आते हुए बोल उठे । आस का सुर्योदय हो चुका था ।

सच है , बधाई 

Comment by Omprakash Kshatriya on July 14, 2015 at 7:55am

आदरणीय  kanta roy  जी , ग्रामीण परिवेश के बदलते माहौल पर सकारात्मक रूप से लिखी आप की लघुकथा बहुत प्रभावी बनी है .

Comment by kanta roy on July 14, 2015 at 7:44am
अच्छा लगा जानकर कि आपको कथा अच्छी लगी आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी । मेरा लिखने का हौसला जरा और बढ़ गया । नमन आपको

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 13, 2015 at 11:44pm

’कुछ अच्छा हो’ के लिए तरसते आजके बहुसंख्यक मन को यह लघुकथा झींसी-झींसी फुहार से मानो तर कर गयी. सकारात्मक अंत के कारण जहाँ बापू पर गर्व हुआ वहीं सीतो की माँ केलिए दुख, कि, उस बेचारी की गलती ही क्या थी ?
एक अच्छी लघुकथा केलिए हार्दिक बधाई आदरणीया

Comment by kanta roy on July 13, 2015 at 1:09pm
आपको कथा को पसंद करना मेरे लिये विशेष उपलब्धि हुई आदरणीय श्री सुनील जी । आभार आपको तहे दिल से ।
Comment by shree suneel on July 7, 2015 at 7:00pm
व्वाहह!! आदरणीया कांता राॅय जी, सार्थक लघु-कथा. उसमें (छोरी) में शिक्षा के प्रति लगन और पिता का सहयोग अनुकरणीय है. संदेश देती इस लघु-कथा के लिए बधाईयां आपको.
Comment by kanta roy on July 7, 2015 at 9:55am
रचना अपने सार्थकता को तभी प्राप्त करती है जब आप सब वरिष्ठजन अपनी प्रतिक्रिया देकर उसके कमियों और पूर्णता का सही आकलन करते है । आदर सहित आभार आपको श्री डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ।
Comment by kanta roy on July 7, 2015 at 9:50am
आभार आपको आदरणीय जवाहर जी हौसला वर्धन के लिए ।
Comment by kanta roy on July 7, 2015 at 9:49am
बहुत आभार आपको आदरणीय कृष्णा मिश्रा ' जान ' गोरखपूरी जी कथा पसंदगी के लिए
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 7, 2015 at 9:38am

आदरणीया मुझे लगाठा कि शायद्कथा निगेटिव होगी पर आखिर में एकदम परिवर्तन हुआ . सकारात्मक , बहुत् बढ़िया , वाह  !

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