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ग़ज़ल : जहां था अंधेरा घना जिंदगी का

122 122 122 122

जहॉं था अंधेरा घना जि़दगी का

वहीं से मिला रास्‍ता रोशनी का

 

सलीबें न बदली न बदले मसीहा

वही हाल है आज तक हर सदी का

 

सितारे फलक से न आये उतर कर

हुआ कब ख़सारा किसी आशिकी का

 

न तुम रो सके औ हमारी अना को

सहारा मिला आरज़ी ही खुशी का

समन्‍दर सुख़न के तलाशे बहुत से

ख़जा़ना मिला है तभी शाइरी का

 

पिया है वही जाम जो दे ख़ुदाई

न अहसां उठाया न बदला सलीका

 

यही चार दिन है यहीं जी सको तो

न अफसोस होगा कभी जि़ंदगी का

मौलिक एवं अप्रकाश्‍ाित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 20, 2015 at 9:50am

आदरणीय रवि भाई खूब सूरत मतला से शुरू हुआ सफर अंत तक बहुत बढिया रहा । ग़ज़ल के लिये आपको  दिली बधाइयाँ ।

यही चार दिन है यहीं जी सको तो  -----  इसे अगर यूँ कहें तो ?  यही चार दिन भी अगर जी लिये तो

न अफसोस होगा कभी जि़ंदगी का                                         न अफसोस होगा कभी जि़ंदगी का  
सोच के देखियेगा आदरणीय ।

Comment by दिनेश कुमार on August 20, 2015 at 4:09am
आदरणीय रवि शुक्ला सर, लाजवाब ग़ज़ल हुई है। हर एक शेर के लिये ढेरों दाद व मुबारकबाद सर। वाह वाह वाह

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 19, 2015 at 9:23pm

आदरणीय रवि जी, शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

जहॉं था अंधेरा घना जि़दगी का

वहीं से मिला रास्‍ता रोशनी का........... बेहतरीन मतला 

 

सलीबें न बदली न बदले मसीहा

वही हाल है आज तक हर सदी का.... वाह वाह 

 

सितारे फलक से न आये उतर कर

हुआ ना ख़सारा किसी आशिकी का ..... बहुत बढ़िया ....हुआ कब ख़सारा किसी आशिकी का

 

न तुम रो सके औ हमारी अना को

सहारा मिला आरज़ी ही खुशी का..... वाह वाह बढ़िया 

समन्‍दर सुख़न के तलाशे बहुत से

ख़जा़ना मिला है तभी शाइरी का............... शानदार शेर .... हासिल-ए-ग़ज़ल 

 

पिया है वही जाम जो दे ख़ुदाई

न अहसां उठाया न बदला सलीका............. बहुत खूब 

 

यही चार दिन है यहीं जी सको तो

न अफसोस होगा कभी जि़ंदगी का............. बहुत सुन्दर 

इस शानदार ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं 

Comment by Ravi Shukla on August 19, 2015 at 9:09pm
आदरणीय हर्ष जी ग़ज़ल पर
आपकी शिरकत के लिए धन्यवाद ।
Comment by Harash Mahajan on August 19, 2015 at 8:10pm
वाह ...."सलीबें नहीं बदलीं न बदले मसीहा" बहुत खूब......आ0 रवि शुक्ला जी हर शेर पर दाद सर ।साभार ।

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