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स्वेटर (लघुकथा)

जनवरी की हड्डी कंपा देने वाली ठंड..मैं ऊपर से नीचे तक गर्म कपड़ों के बावजूद कांप रही थी ।कक्षा में पहुंच कर एक नजर, मेरे सम्मान में खड़े सभी बच्चों पर डाली और बैठने का इशारा किया । तभी मेरी नजर उन बच्चों पर पड़ी जिनके बदन पर कपड़ों के नाम पर बस कपड़ों का नाम था।मैंने उन सभी बच्चों को खड़ा कर दिया ।
"क्यों!स्वेटर कहां है तुम्हारे?स्कूल से स्वेटर के लिये पैसा मिला ना तुम लोगों को फिर..?"लहजा सख्त था । बच्चे सहम गये ।फिर सामने जो कहानी आई बेशक अलग-अलग थी लेकिन नतीजा एक,कि उनके अभिभावक सारा पैसा अपने निजी स्वार्थ पर खर्च कर चुके है ।और वो मासूम डांट के डर से सफाई दे रहे थे-"दीदी!गेहूं की फसल पर स्वेटर आ जायेगा"
"कब"मैंने हैरानी से पूछा ।
"दो महीना बाद "।

.
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by pratibha pande on October 20, 2015 at 11:58am

वाह राहिला जी ,आपकी पहली ही रचना पढ़ रही हूँ , मानों वो ,बच्चे सामने ही खड़े हैं ,ऐसा चित्रण किया है आपने , बधाई आपको इस भावपूर्ण रचना के लिए 

Comment by Rahila on October 19, 2015 at 10:18pm
बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 19, 2015 at 10:10pm

बहुत बढ़िया एक अलग ही विषय पर आपने लिखा बहुत अच्छी लघु कथा हार्दिक बधाई आपको राहिला जी 

Comment by Rahila on October 19, 2015 at 6:13pm
बहुत आभार आपका आदरणीयाआद.अर्चना जी, आदरणीया कल्पना जी ।
Comment by Archana Tripathi on October 19, 2015 at 4:30pm
क्या पता यह गरीबी हैं या अभीभावको की लापरवाही !बच्चों ला पैसा निस मद में मिला हो उसी में खर्च होना चाहिए।बढ़िया लघुकथा के लियए हार्दिक बधाई ।
Comment by Rahila on October 19, 2015 at 1:41pm
आद. नीता जी सरकार ने ड्रेस की राशि अभिभावक को देने का निर्णय लिया है, जिससे वो अपने हिसाब सेअच्छी से अच्छी ड्रेस खरीद लें । लेकिन वो राशि उन बच्चों के पिता जुआ, शराब या कर्जा चुकाने में खर्च कर देते है ।मैंखुद बहुत दुःखी होती हूं उन बच्चों की स्थिति देखकर ।
Comment by Nita Kasar on October 19, 2015 at 1:27pm
कंपकपाती ठंड में बच्चों को कितना सहना पड़ता है वे क्या जाने सरकारी योजनाओं का लाभ उन तक क्यों नहीं पहुँच पाता बधाई आपको आद०राहिला जी ।
Comment by Rahila on October 19, 2015 at 11:56am
बहुत शुक्रिया आदरणीय उस्मानी जी ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2015 at 9:43am
बहुत सुंदर भावपूर्ण सार्थक कटाक्ष/व्यंग्य आदरणीया राहिला जी। बड़ी धमाकेदार प्रविष्ठी रही आपकी ओबीओ पर। सुस्वागतम् ...हार्दिक अभिनंदन। यह एक बेहद कड़वा सत्य ही तो है कि सरकारी योजनाओं का सही लाभ वास्तविक हितग्राहियों तक पहुंच नहीं पाता है, आवाज़ें उठायी जाती हैं, लेकिन सब ढाक के तीन पात।

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