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होंठों पे जिनके दीप जलाने की बात है  | 
सीने में उनके आग लगाने की बात है  | 
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झाड़ी के फैलते हुए हाथों को काट कर  | 
कहते है सिर्फ बाग़ सजाने की बात है  | 
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क्या मुफ़लिसी वतन की सियासत से जाएगी?  | 
ये परबतों पे दाल गलाने की बात है  | 
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अहले-वतन के काफिले होंगे गली-गली  | 
बस इक दबा सवाल उठाने की बात है  | 
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फाकों में देखना है अगर मस्तियाँ तुम्हे  | 
रोटी की गोल ढपली बजाने की बात है  | 
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जब तक चले, सफ़र में रहे, तो ये जिंदगी  | 
ठहरी तो समझो मौत के आने बात है  | 
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खुद ही उतर के आएँगें तारे जमीन पर  | 
बस आसमां से चाँद हटाने की बात है  | 
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कश्मीर पर हुजूर खुलेआम कह दिया  | 
घर की अदावतें क्या बताने की बात है?  | 
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‘मिथिलेश’ मंच पे है मगर बोलता नहीं  | 
परदा यहीं पे आज गिराने की बात है  | 
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Comment
आदरणीय केवल प्रसाद जी इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
अहले-वतन के....................सवाल उठाने की बात है
कश्मीर पर....................... बताने की बात है?
बहुत खूब !!!!!!
मिथिलेश वामनकर साहेब -------------------- बधाई|
आदरणीय मिथिलेश भाई , बेहतरीन गज़ल हुई है शे र दर शे र मुबारकबाद कुबूल फरमायें ॥
क्या मुफ़लिसी वतन की सियासत से जाएगी?
ये परबतों पे दाल गलाने की बात है
अहले-वतन के काफिले होंगे गली-गली
बस इक दबा सवाल उठाने की बात है -- ये शे र बहुत पसंद आये , हार्दिक बधाई आपको ।
झाड़ी के फैलते हुए हाथों को काट कर  | 
कहते है सिर्फ बाग़ सजाने की बात है  | 
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क्या मुफ़लिसी वतन की सियासत से जाएगी?  | 
ये परबतों पे दाल गलाने की बात है! वाह क्या बात है आदरणीय मिथिलेश जी, वधाई आपको!  | 
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इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक सादर बधाई कबूल करें
बहुत खूब .....
"अहले-वतन के काफिले होंगे गली-गली  | 
बस इक दबा सवाल उठाने की बात है" आ0 वामनकर भाईजी, दिल से कही गज़ल के लिये दाद कुबूल करें.  | 
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