For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बृहस्पति और राहू के टकराव से सभी बहुत व्यथित थेI जब भी बृहस्पति के शुभ कार्य प्रारंभ होते तो राहू शरारत करने से कोई अवसर न चूकताI और जब कभी बृहस्पति पाप कर्म पर अंकुश लगाने की कोशिश करते तो राहू कुपित हो जाताI न तो राहू अपनी क्रूरता व अहंकार त्यागने को तैयार था न ही बृहस्पति अपनी नेकी व सौम्यताI बृहस्पति के साधु स्वाभाव तथा राहू की क्रूरता व दंभ के मध्य प्रतिदिन होने वाले टकराव से पृथ्वी त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही थीI धर्म-कर्म के ह्रास से और बढते हुए पाप से त्रस्त देवगण ब्रह्मदेव के समक्ष जा पहुँचेI

"हे ब्रह्मदेव! मातलोक की वर्तमान स्थिति से आप कदाचित परिचित ही हैंI गुरू बृहस्पति से राहू की शुत्रुता के चलते वहाँ बहुत अनर्थ हो रहा हैI" देवराज इंद्र ने अपने आगमन का कारण बतायाI
"कहिए इसमें मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ?"
"हे ब्रह्मदेव! हम चाहते हैं कि यह दोनों परस्पर विरोध त्याग दें, ताकि मानव जाति का कल्याण होI"
"किन्तु ऐसा होना तो असंभव हैI"
"असंभव क्यों ब्रह्मदेव?"
"क्योंकि यह दोनों एक दुसरे से बिलकुल विपरीत गुणों की स्वामी हैं, और वह इनके नैसर्गिक स्वभाव हैं जिन्हें परिवर्तित कर पाना संभव नहींI" बृहस्पति और राहू की तरफ देखते हुए ब्रह्मदेव ने कारण बतायाI
"किन्तु हे देव! यदि ऐसा न हुआ तो मेरा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगाI और यदि मैं ही समाप्त हो गई तो मानव जाति का क्या होगा?" पृथ्वी ने हाथ जोड़ते हुए कहाI
"आपको इस समस्या का समाधान करना ही होगा हे ब्रह्मदेव!" पृथ्वी ने रुंधे हुए स्वर में बिनती कीI
ब्रह्मदेव कुछ समय के लिए अविचल रहे, फिर सहसा कुछ सोचकर उन्होंने एक हाथ से गुरु बृहस्पति की पीतवर्ण ऊर्जा को खींचा और दूसरे हाथ से राहू की नीलवर्ण ऊर्जा कोI पीले और नीले रंग को मिश्रित करते हुए सभागारों को संबोधित करते हुए कहा:
"मैंने पीले और नीले रंग को मिलाकर एक नए रंग का आविष्कार किया हैI"
"किन्तु इस प्रयोजन का अर्थ समझ नहीं आया ब्रह्मदेवI"
ब्रह्मदेव ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया:
"किसी भी ऊर्जा की अंत असंभव है, अत: सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जाओं के मिश्रण से यह हरा रंग बनाया हैI"
"किन्तु इससे क्या होगा?"
"हरा रंग हरियाली और उर्वरता का प्रतीक है, इसके आने से पृथ्वी और मानव जाति का उद्धार होगाI"
हरे रंग का औचित्य और महत्त्व जान कर चारों दिशायों से जय जयकार की ध्वनियां गुंजयमान होने लगींI
देवताओं के चेहरे खिल उठे थे, किन्तु बृहस्पति और राहू की भृकुटियाँ तन रही थींI
.
(मौलिक और प्रकाशित)

Views: 987

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr T R Sukul on January 29, 2016 at 6:09pm

रूपक तो अच्छा है , परन्तु ग्रहों के दर्शाये गए  स्वाभाव, प्रयुक्त किये जाने वाले  ज्योतिष के स्थापित  नियमों के अनुकूल नहीं है।  यथा, गुरु पीत वर्ण होता है यह ठीक है परन्तु राहु छाया गृह होने से नीला नहीं वरन काला है। अतः काले के साथ कोई भी रंग मिलाने  पर काला  ही हो जाता है।  गुरु पूर्वोत्तर दिशा का स्वामी और राहु दक्षिण दिशा का स्वामी है अतः एक दूसरे की ओर समता पूर्वक देखते हैं इसलिए एक दूसरे का  नुक्सान नहीं करते। इन में शत्रुता नहीं है।  सादर। 

Comment by Samar kabeer on January 29, 2016 at 5:34pm

जनाब योगराज प्रभाकर जी आदाब,चकित हूँ आपका लेखन देखकर,वाह बहुत ख़ूब क्या तारीफ़ करूँ,लाजवाब लघुकथा है,ढेरों बधाइयां आपको इस प्रस्तुति के लिये ! एक शिकायत ये है कि आप अपनी पोस्ट पर पलट कर नहीं आते,ऐसा क्यों ?

Comment by Pawan Jain on January 29, 2016 at 5:25pm

ऊर्जा का अंत असंभव है,हरियाली और उर्वरता का प्रतीक हरा रंग।वाह सर गूढ़ गंभीर तथ्यों को सरलता से उजागर कर दिया ।नये पाठ के लिए आभार।

Comment by kanta roy on January 29, 2016 at 5:06pm
किन्तु बृहस्पति और राहू की भृकुटियाँ तन रही थीं ।
----- बहुत ही सार्थक प्रासंगिकता लिये यह रचना हुई है आपकी । ग्रह - नक्षत्रों के तारतम्यता को बहुत खूब रोचकता से इस इस कथा में निर्वाह हुआ है ।
दो शक्तियों का टकराव सदा से प्रकृति के लिए विनाशकारी साबित हुआ है ।
आपके लेखन का उद्देश्य कि ,अहंकारों की लड़ाई मानवीय मुल्यों पर भी सही नहीं है ,भी सार्थक रोपित हुआ है ।
वाक्य विन्यास और शैली भी हमेशा की तरह गजब की बनी है ।
रंगों के तालमेल को आज आपने कथ्य में जिस तरह से उद्धृत किये है यह हम सबके लिए एक सीख बनकर ऊभरी है ।
जहाँ तक बात है हमारे सीखने की तो सर जी आप हम सबके लिए एक युनिवर्सिटी के समान है । सदा हम कृतार्थ महसूस करते है आपकी रचनाएँ पढ़ने के बाद । __/\__/\__/\__

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाशजी  दीपावली अन्नकूट भाई दूज और छठ की शुभकामनाएँ । छंद पर आपका प्रयास सराहनीय…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, दीपावली अन्नकूट भाई दूज और छठ की शुभकामनाएँ । खिल उठता है बुझा हुआ मन, आते जब…"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी चित्रानुकूल बहुत सुन्दर छंद सृजन। हार्दिक बधाई "
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह...दीपोत्सव के हर आयाम को समेट लिया है आपके इस गीत ने।अंतिम छंद का भाव बहुत सार्थक। हार्दिक बधाई…"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी एस टी का जिक्र रोचक बन पड़ा है। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, दीपावली अन्नकूट भाई दूज और छठ की शुभकामनाएँ । सरसी छंद की बीस पंक्तियों के लिए…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ हर बरस हर नगर में होता, अरबों का व्यापार।         …"
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  ______ जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार। जेब सोच में पड़ी हुई है,कैसे पाऊँ…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"चार पदों का छंद अनोखा, और चरण हैं आठ  चौपाई औ’ दोहा की है, मिली जुली यह ठाठ  विषम…"
13 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service