For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल(एतबार न कर )

---------------------------

2122 ----1212 -----112

मान मेरी सलाह प्यार न कर |

हुस्न वालों का एतबार न कर |

हो न  जज़्बात  जाएँ   बेक़ाबू

जानेजां हद वफ़ा की पार न कर

बेच दी जिन सुख़नवरों ने क़लम

उनके जैसा मुझे  शुमार न कर|

हुस्न वाले  वफ़ा नहीं  करते

तू यक़ीं उनपे  बार बार न कर |

आँख भीगी है और हंसी लब  पर

राज़े उल्फ़त को आशकार न कर |

वक़्ते रुख़सत निगाह नम करके

और इस दिल को बेक़रार न कर |

ग़ैर का हाथ जिसने थाम लिया

उसका तस्दीक़ इंतज़ार न कर |

(मौलिक व अप्रकाशित ) 

Views: 632

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 16, 2016 at 9:19pm

जनाब राहुल साहिब , हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया

Comment by Rahul Dangi Panchal on March 16, 2016 at 10:22am
सुन्दर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 15, 2016 at 7:53pm

मोहतरम जनाब रवि शुक्ल  साहिब , ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया , .....आप सही फरमा रहे हैं प्यार अपने आप ही होता है मगर उसके बाद का एतबार सारा नक़्शा बदल देता है , ग़ज़ल में तो सिर्फ सलाह दी गयी है। ...... शुक्रिया 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 15, 2016 at 7:47pm

मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया , ...... आपका कहना दुरुस्त है ,बह्र में लाने  के लिए ऐसा करना पड़ा। ... मश्वरे का बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Ravi Shukla on March 15, 2016 at 12:50pm

आदरणीय तस्‍दीक अहमद जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने,दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं । हमारी बात आदरणीय समर कबीर जी पहले ही कह चुकें है ।

प्‍यार कब जान बूझ कर होता

खदु ही होता है ये अगर हेाता  हा हा हा  बुरा न मानियेगा

बेच दी जिन सुख़नवरों ने क़लम

उनके जैसा मुझे  शुमार न कर|  वाह वाह बहुत खूब जनाब बधाई

Comment by Samar kabeer on March 14, 2016 at 11:06pm
जनाब तस्दीक़ अहमद जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"हो न जज़्बात जाएँ बेक़ाबू"

इस मिसरे में अल्फ़ाज़ की बंदिश चुस्त नहीं है,ग़ौर कीजियेगा ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 14, 2016 at 8:01pm

 मोहतरम जनाब तेजवीर सिंह   साहिब ,ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 14, 2016 at 8:00pm

जनाब लक्ष्मण धामी  साहिब ,ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 14, 2016 at 7:59pm

जनाब नरेन्द्र चौहान साहिब ,ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी

Comment by TEJ VEER SINGH on March 14, 2016 at 7:44pm

हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी! बेहतरीन गज़ल!

बेच दी जिन सुख़नवरों ने क़लम

उनके जैसा मुझे  शुमार न कर|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"निशा स्वस्ति "
8 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"उस्ताद-ए-मुहतरम आदरणीय समर कबीर साहिब की आज्ञानुसार :- "ओबीओ लाइव तरही मुशायरा" अंक 168…"
8 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय हौसला बढ़ाने के लिए बेहद शुक्रिय:।"
8 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय ग़ज़ल तक आने तथा हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
8 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज़ल पर आने तथा इस्लाह देने के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय फिर अन्य भाषाओं ग़ज़ल कहने वाले छोड़ दें क्या? "
8 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"गुरु जी जी आप हमेशा स्वस्थ्य रहें और सीखने वालों के लिए एक आदर्श के रूप में यूँ ही मार्गदर्शक …"
9 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"//मेरा दिल जानता है मैंने कितनी मुश्किलों से इस आयोजन में सक्रियता बनाई है।// आदरणीय गुरुदेव आप…"
9 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जी बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें आ अमीर जी की इस्लाह भी ख़ूब हुई"
9 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"सभी गुणीजनों की बेहतरीन इस्लाह के बाद अंतिम सुधार के साथ पेश ए ख़िदमत है ग़ज़ल- वाक़िफ़ हुए हैं जब…"
9 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"//उर्दू ज़बान सीख न पाए अगर जनाब वाक़िफ़ कभी न होंगे ग़ज़ल के हुनर से हम'// सत्यवचन गुरुदेव। सादर…"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service