तेज़ बारिश के कारण पानी उस सांप के बिल में चला गया, वह और उसकी माँ बाहर निकल आये| बाहर उसे अपनी माँ नहीं दिखी| अब तक बिल में ही पले सांप का बाहर की दुनिया देखने का यह पहला मौका था|
वह रेंगता हुआ जा रहा था कि उसे एक आवाज़ सुनाई दी, "सांप के बच्चे संपोले....", वह घबरा गया, आज से पहले इतनी कर्कश आवाज़ उसने कभी सुनी नहीं थी| उसने देखा कि एक मोटा-तगड़ा आदमी, एक छोटे बच्चे को मारते हुए चिल्ला रहा था, "साले... चोर, चार रोटियाँ चुरा कर ले जा रहा है?"
यह बात सांप की बुद्धि से परे थी, वह रेंग कर आगे चला गया|
वहां उसने देखा एक शराबी, एक औरत से चीख कर कह रहा है, "मैं वो सांप हूँ, जिसका काटा पानी भी नहीं मांगता है, या तो अपने बाप से पैसे लेकर आ, या फिर आज रात मेरे गॉडफादर के पास...."
सांप अपना ज़हर अंदर ही लिए चुपचाप वहां से रेंग गया|
आगे उसने देखा, भीड़ जमा है और दो आदमी लड़ रहे हैं, एक आदमी चिल्लाते हुए कह रहा था, "ये भाई है? मेरा पूरा रुपया हड़प लिया और मेरी पत्नी के साथ ही.... आस्तीन का सांप है यह|"
इतना चिल्लाना सुनकर सांप के सिर में दर्द होने लगा, वह वहां से दूर रेंगा, लेकिन चिल्ला रहे आदमी ने उसे देख लिया और उसे एक डंडा मार दिया|
घबरा कर वह एक झाड़ी में छिप गया| वहीँ उसे आवाज सुनाई दी, "सांप तो निकल गया, अब लकीर पीटने से क्या फायदा, तू अब अपनी पत्नी को सम्भाल|"
इतने में सांप की माँ वहां आ गयी, सांप ने उसे सारी बात बताई| माँ ने पूछा, "किसने मारा तुझे"
सांप ने इशारे से बताया तो माँ ने फिर आश्चर्यचकित होकर पूछा,
"वह बिना आस्तीन के कपड़े पहने आदमी?"
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
बहुत सुंदर और सार्थक लघुकथा का प्रस्तुतीकरण हुआ है आदरणीय। भुजंग के स्वभाव को मानवीय स्वभाव के साथ दर्शा कर कथा की गहनता को और अधिक प्रबल कर दिया है। इससे कथा और भी असरकारक हो गयी है। हार्दिक। बधाई।
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