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"आप लोगों को आने में थोड़ी देर हो गयी, इनका ब्लड प्रेशर इतना कम हो चुका है कि आप लोग... किसी भी तरह की घटना के लिये तैयार रहें|" डॉक्टर के शब्द हल्के से उसके कान में पड़े, लेकिन वह तो इससे पहले ही समझ चुका था, कि मृत्यु उसके बहुत निकट है|

 

हस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए उसने इशारे से अपनी पत्नी और दोनों बेटों को बुलाया| उन तीनों का हृदय आने वाले समय की आशंका से बहुत तेज़ी से धड़क रहा था| वह उन्हें देखकर मुस्कुरा दिया| बड़े बेटे ने कहा, "पिताजी, आपको कुछ नहीं होगा, आप ठीक हो जायेंगे|"

 

उसके होंठों पर मुस्कान और गहरी हो गयी| बेटे ने यह देखकर भाव विह्वल आँखों के साथ अपने चेहरे को स्तुति भरी प्रशंसा की मुद्रा में हिलाया| अब उसने अपनी पत्नी और दूसरे बेटे को इशारे से पास बुलाया और मंद हो रहे स्वर से कहा,

"बड़ा मकान जो तुम दोनों को चाहिये था..... लोन के लिये परेशान था... अब मेरे पी.एफ. से..."

उसकी बात खत्म होने से पहले ही पत्नी की आँखों से आँसू झरझर बहने लगे और छोटे बेटे ने बिना कुछ कहे स्वीकृति की मुद्रा में सिर हिला दिया|

 

वह तब भी मुस्कुरा रहा था, उसने फिर अपने बड़े बेटे की तरफ देखा और आँखों के इशारे से उसे अपने पास बुलाया और पूछा, "तेरी भी कुछ... इच्छा है..."

 

बड़े बेटे ने हाँ में सिर हिलाया और कहा,

"पिताजी, मुझे घर चाहिये...."

 

और यह सुनते ही उसके होंठों पर गहरी मुस्कान की जगह गहरा दर्द आ गया|

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 24, 2016 at 9:51pm

मकान और घर के अंतर को परिभाषित करती हुई बेहद मार्मिक कथा हुई है आदरणीय चंद्रेश भैया | हार्दिक बधाई |

Comment by Nita Kasar on September 6, 2016 at 7:24pm
बेहद संवेदनशील कथा है,कैसे लालची बेटे है जो पिता की भावनाऔ को समझ नही सकते।लानत है एेसी लालची संतान के लिये ।बधाई आपके लिये आद०चंद्रेश भाई जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2016 at 10:33am

आदरनीय सुन्दर, भाव पूर्ण ,मार्मिक कथा के लिये आपको हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2016 at 6:57pm

मकान और घर को परिभाषित करती हुई लघु कथा जो घर की अहमियत समझ गया समझो उसे सब कुछ मिल गया जो बड़े बेटे ने पा लिया |बहुत मार्मिक प्रस्तुति हार्दिक बधाई आपको आद० चंद्रेश जी |

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 4, 2016 at 5:02pm

मकान तो पी.एफ. से बन जायगा, परन्तु घर..... गहरे दर्द का अनुभव कराती  बहुत ही मार्मिक  लघुकथा  है आपकी, आदरणीय चंद्रेश जी। सादर बधाई 

Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 4:07pm
पिता से धन पाने की लालसा ने बेटे के मन में बसा स्वार्थ की गिरह को खोल देती है जो पिता के विश्वास को हठात क्षीण कर गया। बहुत ही गहरी लघुकथा लेखन हुआ है आपका आदरणीय चंद्रेश जी। बधाई प्रेषित है।
Comment by Rahila on September 3, 2016 at 7:38pm
बहुत गहरी बात कह गयी आपकी रचना आदरणीय सर जी!खूब बधाई।सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 3, 2016 at 4:46pm
'मकान' और 'घर' की आकांक्षा और और उनके अन्तर पर गहराई से रौशनी डालती हुई रचना में 'अक्षम दाता' का मानसिक तनाव और अंतिम समय पर समस्या समाधान और परिवार के सदस्यों की भावनाओं व भाव-भंगिमाओं को बाख़ूबी चित्रित किया गया है बहुत बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीय चन्द्रेश कुमार छतलानी जी इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए।
Comment by Samar kabeer on September 3, 2016 at 3:10pm
जनाब चंद्रेश जी आदाब,बहुत ही मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने,बहुत ख़ूब वाह, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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