For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 "वह लड़की विधर्मी लगती है, कपड़े ज़रूर अलग पहने हैं, लेकिन शक्ल और चाल-ढाल तो..." सड़क के कोने में छिपकर बैठे एक मनचले ने शराब का घूँट भरते हुए दूसरे मनचले से कहा|

 

"इसको उठा लेते हैं... आजकल पूरा देश भी इनके विरुद्ध है" दूसरे की लाल आँखों में मक्कारी स्पष्ट झलक रही थी|

 

दोनों दौड़ कर उस लड़की के सामने खड़े हो गये, और तेज़ स्वर में दुश्मन देश के मुर्दाबाद का नारा लगाया|

 

लड़की भौचंकी रह गयी, उसको डरता देखकर उन दोनों के हौसले और भी बुलंद हो गये और उस लड़की का हाथ पकड़ कर उसे खींचने लगे|

 

लड़की ने जैसे-तैसे खुदको छुडाया और तेज़ी से भागी, वो दोनों भी उसके पीछे भागे, भागते हुए वे एक धार्मिक और राजनीतिक संगठन के पक्ष में नारे लगाते रहे| तभी एक बूढ़ा व्यक्ति से उन दोनों के सामने आ गया और चिल्ला कर बोला, "छोड़ दो इसे..."

 

"यह विधर्मी है, हम इसे नहीं छोड़ेंगे..." एक ने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा|

 

"यह विधर्मी नहीं, मेरी भतीजी है..." उस व्यक्ति ने दृढ़ शब्दों में कहा, तब तक कुछ और लोग भी आ गये, और दोनों मनचले भाग उठे|

 

लड़की बहुत घबरा गयी थी, उसने उस बूढ़े व्यक्ति के हाथ जोड़े और कहा, "शुक्रिया बाबा! आपने बचा लिया... आप कौन हैं?"

 

बूढ़े व्यक्ति ने कहा, "मैं उसी संगठन का शहर प्रमुख हूँ, जिसके नारे ये लगा रहे थे|"

 

लड़की फिर से भयभीत हो गयी, उसने घबराते हुए पूछा, "आपने मुझे अपने ही लोगों से...?"

 

"ये लोग मेरे संगठन के नहीं हैं|”

 

कहकर वह चल दिया, कुछ कदमों बाद ठिठका और बिना मुड़े ही कहा,

“सालों पहले किसी ने तुम लोगों से कहा था कि यहीं रुक जाओ... उसकी याद आ ही जाती है|"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 791

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 3, 2016 at 7:04pm

सादर आभार आदरणीया कल्पना भट्ट दी, आपको लघुकथा का यह प्रयास ठीक लगा| 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 3, 2016 at 7:03pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब आपको यह रचना ठीक लगी और आपने इसके मर्म तक पहुँच कर इसका विश्लेषण भी किया| आपके विश्लेषण से सहमत हूँ| सादर,

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 3, 2016 at 7:03pm

सादर धन्यवाद आदरणीय शिज्जु शकूर जी आपने रचना को सही दिशा देने के लिए प्रवृत्त किया|

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 3, 2016 at 7:02pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय विनोद खनगवाल जी सर आपने महत्वपूर्ण परिवर्तन की तरफ इंगित किया, इस दिशा में कार्य करने का प्रयास करता हूँ|

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 3, 2016 at 7:02pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी साहब आपको यह प्रयास ठीक लगा|

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 7:44pm

आदरणीय चंद्रेश भैया आपकी यह कथा बहुत अच्छी लगी | बहुत बहुत बधाई आपको इस कथा के लिए |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 3, 2016 at 7:45pm
भाई-भाई के देश में 'भतीजी' के बचाव में बंटते हुए किन्तु स्वतंत्र हुए देश के हालात पर तीखी पंचपंक्ति कहकर सब कुछ कह दिया। क्या मैंने सही समझा आदरणीय सर चन्द्रेश कुमार छतलानी जी?
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 3, 2016 at 7:37pm
'भौचक्की' के स्थान पर 'भौचंी' टंकित हो गया है। सादर सूचनार्थ आदरणीय चन्द्रेश कुमार छतलानी साहब।'
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 3, 2016 at 7:31pm
यदि मैं सही समझ पा रहा हूँ, तो यह बहुत ही स्पष्ट किन्तु गूढ़ लघुकथा कही गई है। बहुत सी बातें प्रतीकात्मक शैली में कहने से रचना कुछ पाठकों को भले कुछ पल के लिए उलझाये, लेकिन रचना दमदार तरीके से कथ्य सम्प्रेषित करने में सफल हुई है अप्रत्यक्ष रूप से तथ्यों के कुशन के साथ। प्रचलित शब्द का प्रयोग किए बिना बाख़ूबी 'विधर्मी' शब्द का प्रयोग करते हुए रचना का बेहतरीन आग़ाज़ करके अंतिम तीखी पंचपंक्ति द्वारा बेहद कसी हुई शिल्पबद्ध लघुकथा हेतु तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय चन्द्रेश कुमार छतलानी जी। यही मानव धर्म है विसंगत परिस्थिति व विसंगत परिदृश्य में। बिना किसी पात्र-नाम के बिना किसी धर्म का नाम सीधे तौर पर लिए सबकुछ कह देने की कला कोई इस रचना से सीखे। मेरे विचार से यही उत्कृष्ट लघुकथा लेखन कर्म व लेखनी धर्म भी है। कृपया वरिष्ठ जन समझाइयेगा कि मैं किस सीमा तक सही कह पाया हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 3, 2016 at 5:48pm

आदरणीय चंद्रेश जी आखिर में आपकी लघुकथा कुछ अधूरी सी मालूम होती है, बहरहाल इस प्रयास हेतु आपको बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"गजलों खो लेकर एक बात जो कम ही चर्चा में आअती है, वह है उसके मिसरों का गद्यानुरूप होना. अर्थात,…"
18 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
26 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा

.गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा नशा उतार ख़ुदाया नशा उतार मेरा. . बना हुआ हूँ मैं जैसा मैं…See More
51 minutes ago
Mayank Kumar Dwivedi posted a blog post

ग़ज़ल

2122 1122 1122 22आप भी सोचिये और हम भी कि होगा कैसे,,हर किसी के लिए माहौल ये उम्दा कैसे।। क्या…See More
52 minutes ago
Chetan Prakash replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ जी, क्षमा करें, समस्या के मूल में जाने के बजाय जिम्मेदार लोग  ' बलि का बकरा ढूँढ़…"
57 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आ. अशोक जी,बहुत सुन्दर छन्द हुआ है ...बधाई स्वीकार करें.एक शंका है...होतीं बेटियाँ की जगह क्या होती…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - सपने
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक -वाणी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। उत्तम छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय शिज्जू भाई, घनाक्षरी या सवैया जिन्हें उनकी कुल मात्रिकता के कारण वृत्त या दण्डक की श्रेणी का…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक रक्ताले सर, जी बेहतर की संभावना तो हर जगह होती है, मगर मेरे कहने का आशय यह नहीं था।…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सादर अभिवादन आदरणीय। मेरा मानना है कि अमित जी को इस संदर्भ में स्वयं अपना पक्ष रखना चाहिए और अपनी…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service