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कुछ दोहे
----------

१.
केवल धन की चाह में,भूला खान व पान
आपा-धापी में सदा, पड़ा रहे इंसान।
२.
बुद्धिमान भी मूढ़ है,क्रोध चले जब जीत
पलभर में ही खत्म हो,वर्षों की सब प्रीत।
३.
सबको दें उपदेश जो,हो खुद उससे दूर
कोरी उस बकवास को,क्यों सब मानें नूर।
४.
पढ़े शास्त्र को बैठ कर,नीयत हो नापाक
बस झूठे ही ज्ञान से,फिरे जमाता धाक।
५.
ढाई आखर प्रेम के,रखते शक्ति अपार
वहाँ चली तलवार कब,जहाँ चला है प्यार।
६.
कलम उठा कर मैं लिखूँ, यह दोहा सन्देश
कृपा करें माँ शारदे,साथी हों सर्वेश!


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 7, 2016 at 5:16pm
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज सर प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन के लिए तहे दिल शुक्रिया।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 7, 2016 at 5:10pm
आदरणीय रामबली भाई साहब प्रोत्साहन एवं प्रयास के अनुमोदन हेतु बहुत् बहुत् आभार।नमन
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 7, 2016 at 10:54am

सुंदर  प्रयास दोहों  पर -

बस धन की चाहत बुरी,भूले खान व पान  -  चाह मात्र धन की रहे, भूले खान व पान या  खाना पीना भूल, 
आपा-धापी में सदा, पड़ा रहे इंसान।           आपा धापी में सदा, गिरता वह इंसान |      रहे अधर में झूल  |

Comment by रामबली गुप्ता on September 7, 2016 at 5:51am
वाह बहुत सुंदर संदेशपूर्ण दोहे आद० राणा जी दिल से बधाई स्वीकार करिये।

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