For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्र:1222 1222 1222 1222

नफ़स मुश्किल हुआ लेना नजारे रक्स करते हैं
छुड़ा कर आज दामन को सहारे रक्स करते हैं।

यकीं जिनपर मुझे सबसे ज़ियादा था हुआ करता
गिरा कर हौंसला मेरा वो'प्यारे रक्स करते हैं।

गवाही कौन देगा अब तुम्हारी बे गुनाही की
बिका ईमां गवाहों का वे' सारे रक्स करते हैं।

भुला आवाज को दिल की तमाशा देखते हैं सब
"सफीने डूब जाते हैं किनारे रक़्स करते हैं।"

मुहब्बत कर रहे देखो पराई से सभी यारो
भुला अपनी ही'भाषा को हमारे रक्स करते हैं।

गमों में खो गया सारा उजाला था जो' जीवन में
कि छुपकर अब्र के पीछे सितारे रक्स करते हैं।

गुहर की आस कब कोई न हीरे भी हमें भाते
विरह से दिल में दहके जो अंगारे रक्स करते हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 846

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 10:16pm

अच्छी रचना हुई है आदरणीय सतविन्द्र जी |

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 28, 2016 at 5:34pm
आदरणीय शिज्जु शकूर जी हौंसलाफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया।वांछित संशोधन की कोशश की है।कृपया पुनः अवलोकन क्Rइन्।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 27, 2016 at 1:05pm
आदरणीय रवि शुक्ल जी सादर।हौंसलाफ़ज़ाई एवं मार्गदर्शन के लिए सादर हार्दिक आभार सँग नमन!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2016 at 1:55pm

अच्छी कोशिश है आदरणीय सतविंदर जी शेष गुणिजनों ने कह ही दिया है

Comment by Ravi Shukla on September 21, 2016 at 1:30pm
आदरणीय सतविंद्र जी ग़ज़ल की बह्र को आपने अच्छी तरह निभाया है बधाई स्वीकार करे उस्ताद लोगो की राय अर् चुकी है उसके मुताबिक जरूरी संशोधन करने का निवेदन है ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 21, 2016 at 12:45pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर।आपको यह प्रयास दुरुस्त लगा ,यह सार्थक हुआ।आदरणीय फव्वारे की जगह फवारे शब्द किया था जो कि वर्तनी के अनुसार गलत था।इस मिसरे को ही दोबारा सोचना पड़ेगा।आपके मार्गदर्शन के लिए आभारी हूँ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 21, 2016 at 12:39pm
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी आपको यह प्रयास पसन्द आया,यह सार्थक हुआ।सादर हार्दिक आभार।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 21, 2016 at 12:38pm
आदरणीय सुरेश भाई जी ग़ज़ल को पसन्द करने के लिए सादर हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2016 at 9:26am

आदरणीय सतविन्द्र भाई , कठिन रदीफ ले कर आपने बड़ी सरलता से शे र कह लिये , क्या बात है ! हार्दिक बधाइयाँ । अंतिम शेर  फव्वारे  के कारण बेबहर हो गया है , देखियेगा ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 20, 2016 at 10:32pm

आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर, बहुत खूबसूरत गजल कही है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service