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सभी रिश्ते है मतलब के ये मानो या न मानो तुम,
है मिलते प्यार में धोखे ये मानो या न मानो तुम,
 
रहूँ मैं राम भी बनके अगर हो भरत सा भाई,
है माता कैकई घर मे ये मानो या न मानो तुम,      
 
यकीं मानो न बिगड़ेगा कभी भी गैर के कारण,
करेंगे वार बस अपने ये मानो या न मानो तुम,
 
पड़े अब आँख पर परदे नये रिश्तों के शीशे से,
हैं टूटे खून के धागे ये मानो या न मानो तुम,
 
कलेजा चीर भी दोगे नहीं कुछ मोल है "बागी"
रहा पानी न आँखों में ये मानो या न मानो तुम

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 18, 2011 at 9:27pm
शन्नो दीदी, ग़ज़ल पसंद करने हेतु बहुत बहुत आभार |
Comment by Shanno Aggarwal on June 18, 2011 at 9:19pm
आज के बदलते हुये रिश्तों पर कोई भरोसा नहीं..स्वार्थ और कटुता ही मिलती है देखने को अधिकतर. उन भावनाओं की अभिव्यक्ति का चित्रण इस गजल में बहुत ही ख़ूबसूरती से किया है आपने, गनेश. बधाई.
Comment by अमि तेष on June 15, 2011 at 10:59am
पड़े अब आँख पर परदे नये रिश्तों के शीशे से,
हैं टूटे खून के धागे ये मानो या न मानो तुम...
Ganesh Dada laajabaab.............
Comment by Rohit Singh Rajput on June 12, 2011 at 2:24pm
wow dats so much nice....old thoghts implemented in modern style

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 8, 2011 at 6:52pm
भाई अरविन्द पाठक जी, ग़ज़ल सराहने हेतु आभार |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 8, 2011 at 6:51pm
मोईन भाई, मक्ता को सराहने हेतु शुक्रिया |
Comment by arvind pathak on June 8, 2011 at 5:23pm
बंधु आपकी रिश्ते की रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा.....धन्यवाद...
Comment by moin shamsi on June 7, 2011 at 8:58pm
waah ! makhta to bada hi zabardast hai !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 7, 2011 at 11:32am
नुरैन भाई आभारी हूँ आपका | आप जैसे फनकार की सराहना निश्चित मनोबल में वृद्धि करती है |
Comment by Noorain Ansari on June 7, 2011 at 11:24am
गणेश जी..प्रणाम..
सच्चाई से लबरेज सुंदर शब्दों के श्रृंगार  से सुसजित आपकी ये रचना लाजवाब है..

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