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काफिया : आये ; रदीफ़ :न बने

बहर : ११२२-| ११२२  ११२२  २२/११२

      २१२२}

तंज़ सुनना तो’ विवशता है’, सुनाये न बने

दर्द दिल का न दिखे और दिखाए न बने | 

पाक से हम करे’ क्या बात बिना कुछ मतलब  

क्यों करे श्रम जहाँ’ की बात बनाए न बने |

क्या कहूँ उनके’ हुनर की, है’ अनोखा अनजान

यही’ तारीफ़ कि हमको न सताए न बने |

कर्म इंसान का’ हो ठीक सितारा जैसा

कर्म काला किया’ तो चेहरा’ दिखाए न बने |

हाथ की रेखा’ बताती है’ कि आगे क्या है

मर्द तक़दीर जो’ बिगड़े तो’ बनाए न बने |

प्रेम करने गया’ था पर बना’ बेचारा बैर

नफरतों की जो’ लगी आग बुझाए न बने  |

न हुई गंगा’ सफाई कई’ सालों के बाद

भक्त जाते हैं’ नहाने तो’ नहाए न बने |

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by नाथ सोनांचली on September 20, 2017 at 1:24pm
आद0 कालीपद जी ग़ज़ल पर बेहतरीन प्रयास के लिए बधाई। आद0 समर साहब की बातों का संज्ञान लीजियेगा सादर
Comment by Samar kabeer on September 20, 2017 at 11:56am
जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब,'ग़ालिब'की ज़मीन में ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करे ।
ग़ज़ल अभी बहुत समय चाहती है ।
Comment by Mohammed Arif on September 20, 2017 at 8:32am
आदरणीय कालीपद प्रसाद जी आदाब, अच्छा प्रयास मगर गुणीजनों के आने का इंतज़ार करें। हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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