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उसकी सूरत नई नई देखो

2122 1212 22
उसकी सूरत नई नई देखो ।
तिश्नगी फिर जगा गई देखो।।

उड़ रही हैं सियाह जुल्फें अब ।
कोई ताज़ा हवा चली देखो ।।

बिजलियाँ वो गिरा के मानेंगे ।
आज नज़रें झुकी झुकी देखो ।।

खींच लाई है आपको दर तक ।
आपकी आज बेखुदी देखो ।।

रात गुजरी है आपकी कैसी ।
सिलवटों से बयां हुई देखो ।।

डूब जाएं न वो समंदर में ।
क्या कहीं फिर लहर उठी देखो ।।

हट गया जब नकाब चेहरे से ।
पूरी बस्ती यहां जली देखो ।।

वो तसव्वुर में लिख रहा ग़ज़लें ।
याद आती है आशिकी देखो ।।

खत को पढ़कर जला दिया उसने ।
चोट दिल पर कहीं लगी देखो ।।

उसके दिल में धुंआ अभी तक है ।
आग अब तक नहीं बुझी देखो ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

         नवीन मणि त्रिपाठी 

मौलिक अ प्रकाशित

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Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 6, 2017 at 7:32am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी ग़ज़ल का.प्रयास अच्छा है बधाई आदरणीय समर कबीर साहब ने जो भी कहा.है उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। सादर

Comment by Samar kabeer on December 5, 2017 at 9:29pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।

2रे,5वें,और 6ठे शैर में रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हो ज़का ।

तीसरे शैर में मफ़हूम साफ़ नहीं,सानी मिसरा दूसरा कहें ।

'देखिये फिर लहर उठी शायद'

जब आप दिखा ही रहे हैं तो 'शायद' कहने की क्या ज़रूरत?

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