For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'मासूम पे इल्ज़ाम लगाना ही नहीं था'

मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़ऊलुम

सोई हुई ख़्वाहिश को जगाना ही नहीं था

ख़्वाबों में मेरे आपको आना ही नहीं था

बाग़ी है अगर तुझ से तो अब कैसी शिकायत

औलाद का हक़ तुझको दबाना ही नहीं था

वो होके पशेमान यही बोल रहे हैं

मासूम पे इल्ज़ाम लगाना ही नहीं था

सब,झूट यही कह के यहाँ बोल रहे थे

सच बोलने वालों का ज़माना ही नहीं था

बहरों की ये बस्ती है "समर" जान गये थे

फिर तुमको यहाँ शोर मचाना ही नहीं था

समर कबीर

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1271

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 22, 2018 at 7:20am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन ।लाजवाब गजल हुई है कोटि कोटि बधाई ।

Comment by नाथ सोनांचली on March 22, 2018 at 5:52am

आद0 आली जनाब समर कबीर साहब सादर प्रणाम। रचना पर देर से उपस्थित होने के लिए माफी चाहूँगा, पर जीवन की भागमभाग में थोड़ा व्यस्त हो गया था।

पहली बात मैं आपको हृदय से आभार व्यक्त करना चाहूंगा कि आपने अपनी ग़ज़ल के माध्यम से हम सीखने वालों को बढिया पाठ पढ़ाया कि किस तरह दोष रहित ग़ज़ल लिखी जाएं। काफ़ियाबन्दी में होने वाली त्रुटियों से बचने के लिए आपकी ग़ज़ल और इस ग़ज़ल पर हुई चर्चा से बहुत कुछ सीखने समझने को हैं। पुनश्च आभार।

अब आते हैं ग़ज़ल पर।

मतला कितना मासूमियत भरा, बरबस ही वाह निकलता है। बाकमाल। दूसरे शेर के महीन खयाल को आप जैसा शाइर ही बुन सकता है। वह वाह।

बहरों की यह बस्ती है, 'समर' जान गए थे,

फिर तुमको यहाँ शोर मचाना ही नहीं था।।

ग़ज़ज़्ब। बहुत बेहतरीन अंदाजे बया आपके कहन का। शेर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 21, 2018 at 10:59pm

उचित है आदरणीय..सादर

Comment by Samar kabeer on March 21, 2018 at 6:35pm

क़ाफ़िया है 'आना'अब जगाना-में से आना निकाल दें तो शब्द बचेगा 'जग',इसी तरह हटाना में से आना निकाल दें तो शब्द बचेगा 'हट' अब 'जग' और 'हट' दोनों शब्द बा मा'ना यानी सार्थक हैं इसलिए इनमें से एक शब्द यानी मतले के एक मिसरे में क़ाफ़िया बदल दें तो,जैसे 'ज़माना'अब ज़माना में शब्द 'माना' चलेगा जो जगाना के साथ 'माना' की तुकान्तता बनाता है,अधिक विस्तार से जानने के लिए पटल पर जनाब वीनस केसरी साहिब का आलेख पढ़ें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 21, 2018 at 6:20pm

आदरणीय तिवारी जी की टिप्पड़ी पढ़ी है मैंने।लग और हट काफ़िया नहीं हो सकते..लेकिन क्यों ये साफ साफ समझ नही आ रहा।

Comment by Samar kabeer on March 21, 2018 at 6:07pm

आप इस ग़ज़ल पर जनाब अजय तिवारी साहिब की टिप्पणी पढ़ लें ।

आपका मतला ठीक है ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 21, 2018 at 6:02pm

लेकिन आदरणीय ये दोष क्यों आ रहा है..मतले में लगाना और हटाना..मिसरों में परस्पर विरोधाभास है।इसलिए या कोई और वजह?
एक मतला लिखा अभी हाल ही में..

दर्द ही छलके न तो किस काम की तन्हाइयाँ
जान ही ले लेंगी ज़ालिम शाम की तन्हाइयाँ..यहाँ भी परस्पर विरोधाभास है..क्या ये सही है?

Comment by Samar kabeer on March 21, 2018 at 5:53pm

जनाब बृजेश साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।

Comment by Samar kabeer on March 21, 2018 at 5:42pm

प्रिय,ये सब ओबीओ मंच की पहचान है,कुछ लोग अपनी रचनाओं पर आलोचना और चर्चा पसन्द नहीं करते उन्हें याद दिलाना था कि ये ओबीओ का ख़ास मक़सद है । ओबीओ ज़िंदाबाद ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 21, 2018 at 5:38pm

बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आदरणीय..सभी टिप्पड़ी सार्थक हैं..कुछ सीखने को मिला..सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
48 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
20 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
Wednesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service