ग़ज़ल(डर लग रहा है तेवरे दिलदार देख कर )
(मफ ऊल-फाइलात-मफाईल-फाइलुन/फाइलात)
इक़रार में छुपा हुआ इनकार देख कर।
डर लग रहा है तेवरे दिलदार देख कर ।
जो आरज़ूए दीद थी काफूर हो गई
रुख़ पर पड़ी निक़ाब की दीवार देख कर ।
दिल की ख़ता है और निशाना जिगर पे है
तीरे नज़र चलाइए सरकार देख कर ।
अगला निशाना तू ही है दहशत पसन्द का
हँस ले तू ख़ूब घर मेरा मिस्मार देख कर ।
शायद बना लिया गया फिर कोई आशियाँ
तड़पे है बर्क़ जानिबे गुलज़ार देख कर ।
कर्फ़्यू में घर ग़रीबों के ही लुटते हैं हुज़ूर
हैरान क्यूँ हैं आज का अख़बार देख कर ।
तस्दीक़ जिन अज़ीज़ों पे था तुम को एतमाद
कतरा रहे हैं वो तुम्हें नादार देख कर ।
काफ़ूर--ग़ायब, बर्क़--बिजली, एतमाद--भरोसा
नादार--मुहताज, मिस्मार--गिराया हुआ
दहशत पसन्द--डर फैला कर हुकूमत बदलने वाला
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आ. भाई तस्दीक अहमद जी सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।
वाह क्या बात है बहुत खूब लिखा आपने ।
जनाब अजय तिवारी साहिब ,आपकी ग़ज़ल पर खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय तस्दीक अहमद साहब, खूबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.
जनाब ब्रजेश कुमार साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है आदरणीय..सादर
आपकी मर्ज़ी, लेकिन ये बेकार की बह्स नहीं है ।
मुहतर्मा नीलम साहिबा ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
जनाब समर साहिब आपकी सोच कुछ भी हो लेकिन मेरे ख़याल से सही है
दीवार का मतलब पर्दा ही नहीं बल्कि , हद ,ओट ,रुकावट भी होता है । इस पर बेकार की बहस करने से कोई फायदा नहीं --सादर
आदरणीय तसदीक अहमद जी, बेहतरीन गजल के लिए बधाई ।
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