For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल २१२२ २१२२ 
बात जो मन में तही है
कुछ कही कुछ अनकही है
भार ढोती है जगत का
तब धरा यह पुज रही है
याद वो, आये न आये
पर सताती रोज ही है
है कठिन यह जान पाना
क्या गलत है क्या सही है
इस कदर छाया है दिल पर
हर जगह दिखता वही है
सच कहो अब चुप न बैठो
क्यों जमा मुँह में दही है
राम के दरबार में सब
आपकी खाता बही है
"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 754

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 13, 2018 at 6:01pm

ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरत कही है आदरणीय..और आदरणीय समर जी ने एक ज्ञान बात भी बताई..बहुत बहुत शुक्रिया..

Comment by Neelam Upadhyaya on July 13, 2018 at 3:52pm

बढ़िया  ग़ज़ल की पेशकश के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार जी। 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 13, 2018 at 3:21pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 13, 2018 at 3:21pm

आदरणीय Samar kabeer जी दिल से शुक्रिया आपका आपने मेरी रचना को समय दिया और अतिमहत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराया, सादर नमन आपको 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 13, 2018 at 3:20pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by TEJ VEER SINGH on July 13, 2018 at 12:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार जी।बेहतरीन गज़ल।

इस कदर छाया है दिल पर
हर जगह दिखता वही है
Comment by Samar kabeer on July 13, 2018 at 11:28am

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'क्या ग़लत है क्या सही है'

इस मिसरे में क़ाफ़िया दोष है,इस सम्बन्ध में मंच को आपके माध्यम से एक महत्वपूर्ण जानकारी देना चाहता हूँ ।

"सही"(फ़ारसी)--अर्थ: सीधा-रास्त, उमूमन 'सर्व'(एक दरख़्त,जो बहुत लम्बा और सीधा होता है)की सिफ़त के तौर पर इस्तेमाल होता है ।

"सहीह"(अरबी)--अर्थ: दुरुस्त-ठीक-बजा-तस्दीक़-

दस्तख़त ।

जब किसी शब्द को जांचना हो तो उसका उलट शब्द देखना चाहिये, जैसे "सीधा" का उलट होगा "टेडा"

"सहीह" का उलट होगा "ग़लत" ।

आम तौर पर लोग "सही" को "सहीह" के अर्थ में ले लेते हैं,जबकि ये सरासर ग़लत है,आम तौर पर "सही" का उच्चारण  "सहीह" कर लिया जाता है,लेकिन ग़ज़ल एक ऐसी विधा है जिसमें प्रचलन में आये शब्दों से बचा जाना चाहिए ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 12, 2018 at 10:18pm

आ. भाई बसंत जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 12, 2018 at 4:55pm

दिल से शुक्रिया आपका आदरणीय Shyam Narain Verma जी 

Comment by Shyam Narain Verma on July 12, 2018 at 4:45pm
बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
22 hours ago
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service