For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ९०

२१२२ ११२२ ११२२ ११२/२२

अस्ल के बाद तो जीना है निशानी के लिए
ज़िंदगी लंबी है दो रोज़ा जवानी के लिए //१

यूँ ज़बां ख़ूब है ये तुर्रा बयानी के लिए
उर्दू मशहूर हुई शीरीं ज़बानी के लिए //२

लोग क्यों दीनी तशद्दुद के लिए मरते हैं
जबकि जीना था उन्हें जज़्बे रुहानी के लिए //३

नफ़्स के झगड़े हैं ने'मत से भरी दुन्या में
चंद रोटी के लिए तो, कभी पानी के लिए //४

क्यों रक़ीबों से मुरव्वत की तवक्को रखना
कुफ़्र लाज़िम हैं जिन्हें रेशा दवानी के लिए //५

इश्क़ आसाँ नहीं था हुस्ने गराँ से करना
जीते जी मरना पड़ा शौक़े निहानी के लिए //६

दिल तो यूँ है कि जैसे प्यास का मारा पंछी
छत से उड़ जाए किसी झील के पानी के लिए //७

हमने इक तीर से माशूक़ को बिस्मिल है किया
और इक तीर बचा रक्खा है सानी के लिए //८

बाद इस ज़िंदगी के हो न मलालत हमको
रूह की जाए' अबस आलमे फ़ानी के लिए //९

लोग क्या ‘राज़’ की समझेंगे शहादत यारो
उसने किरदार को मारा है कहानी के लिए //१०  

~राज़ नवादवी

“मौलिक एवं अप्रकाशित”

अबस- व्यर्थ; रेशा दवानी- षड्यंत्र

Views: 806

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on January 10, 2019 at 12:43am

आदरणीय TEJ VEER SINGH साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया. सादर. ममनून हूँ कि आपको मक़ता ख़ासतौर पे पसंद आया. सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on January 10, 2019 at 12:42am

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by TEJ VEER SINGH on January 9, 2019 at 1:38pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राज नवादवी जी। बहुत सुंदर गज़ल।

लोग क्या ‘राज़’ की समझेंगे शहादत यारो
उसने किरदार को मारा है कहानी के लिए

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2019 at 7:19pm

आ. भाई राजनवादवी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by राज़ नवादवी on January 8, 2019 at 2:40pm

आदरणीय  Gajendra shrotriya साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और ज़र्रा नवाज़ी का दिल से ममनून हूँ. सादर 

Comment by Gajendra shrotriya on January 8, 2019 at 2:08pm

वाह! क्या ख़ूब अशआर हुए हैं आदरणीय राज़ नवादवी साहिब, दिली दाद हाज़िर है इस दिलकश कलाम पर। बहुत बधाई आपको।

Comment by राज़ नवादवी on January 7, 2019 at 12:22pm

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. आपकी अनुशंसा पाकर धन्य हुआ. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का तहेदिल से ममनून हूँ. सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on January 7, 2019 at 12:20pm

आदरणीय  Md. anis sheikh साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और ज़र्रानवाज़ी का तहेदिल  से शुक्रिया. आपकी   मुहब्बत-ओ-तहसीन पाके ममनून हुआ. मुझे दिली ख़ुशी है कि आप इस नाचीज़ की ग़ज़ल पढ़कर लुत्फंदोज़ हुए. सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on January 7, 2019 at 12:18pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और ज़र्रानवाज़ी का तहेदिल  से शुक्रिया. आपकी   मुहब्बत-ओ-तहसीन पाके ममनून हुआ. सादर. 

Comment by Samar kabeer on January 7, 2019 at 12:05pm

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
17 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service