For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

न गुनगुनाना न बोल पड़ना,
अभी अधर पर सघन हैं पहरे।


अगर तिमिर को सुबह कहोगे
तभी सुरक्षित सदा रहोगे
अभी व्यथा को व्यथा न कहना
कथा कहो या कि मौन रहना
न बात कहना निशब्द रहना
सुकर्ण सारे हुए हैं बहरे।

न तार छेड़ो सितार के तुम
बनो न भागी विचार के तुम
हवा बहे जिस दिशा बहो तुम
स्वतंत्र मन को विदा कहो तुम।
यही समय की पुकार सुन लो
सवाल सारे दबा दो गहरे।

मशाल रखना गुनाह घोषित
वहाँ करें कौन दीप पोषित।
प्रकाश की हर सभा को घेरे,
बने सभापति गहन अँधेरे।
विराट संकट टला नहीं हैं
कहो किरण से यहाँ न ठहरे।

न वेदना का सचित्र लेखा
न मुस्कुराते किसी को देखा
विकास गाथा व्यथा छुपाकर
सुना रहे हैं बिगुल बजाकर
नई व्यवस्था में मिल रहे हैं
अमीर दर्पण गरीब चेहरे।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 743

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 9, 2019 at 10:39pm

आदरणीय अनीस शेख जी, आपकी प्रशंसा मुग्धकारी है। सराहना और मुक्तकंठ प्रशंसा हेतु हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद आप का। सादर

Comment by Md. Anis arman on March 7, 2019 at 12:55pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी इस गीत के लिए बहुत बहुत बधाई मुझे गीत लेखन के बारे में जियादा कुछ नहीं पता और गीतों को  मैं सरसरी नज़र से पढ़ कर आगे बढ़ जाता था , पर आपके इस गीत ने मुझे जकड़ लिया और इसकी लय ने मुझे ख़ुद में जैसे  डुबो लिया है इतना आनंद मुझे आमिर खुसरो साहब की ग़ज़ल "जे -हाल -ए -मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराएँ नैना बनाए बतियाँ" पढ़ के मिला था , आपके इस गीत को पढ़ कर गीत लिखने की इच्छा होने लगी पुनः एक बार बहुत बहुत बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 6, 2019 at 11:26pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार।बहुत बहुत धन्यवाद।सादर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 6, 2019 at 11:23pm

आदरणीय समर कबीर जी, इस गीत पर आपकी सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पाकर मुग्ध हूँ। एक अरसे बाद फिर से अभ्यास शुरू किया है। पूरे एक साल बाद। अब अभ्यास में निरंतर रहने का प्रयास करूँगा। इस प्रयास की सराहना हेतु आभार।सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 6, 2019 at 11:18pm

आदरणीय हरिओम जी, गीत की सराहना एवम उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 6, 2019 at 11:17pm

आदरणीय सतविंद्र जी, गीत की सराहना हेतु हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 6, 2019 at 11:14pm

आदरणीय बृजेश कुमार जी, मेरे प्रयास की सराहना के लिए आभार। आप गीत को विशेष चश्मे से देख रहे हैं जबकि मेरा गीत सार्वभौमिक दृष्टि की अपेक्षा रखता है। आप गीत को भारत की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था के सापेक्ष देखेंगे तो यह आपको आज़ादी के पहले का, आज़ादी के बाद का और आज का गीत लगेगा। खैर मैंने पूरा प्रयास किया कि व्यथित भारत की स्थिति को शाब्दिक करने का। आप गीत की प्रत्येक पंक्ति पर गहन विचार करें तो सम्भवतः मेरे प्रयास तक पहुंच सकें। एक बात और कि कवि का कथ्य सदैव सत्य और यथार्थ के विश्लेषण उपरांत ही संप्रेषित होता है। कृपया ऐसे समस्त वाद, विचारधारा आदि से मुक्त एक आम आदमी जो रोटी कपड़ा मकान स्वास्थ्य शिक्षा आदि के जुगाड़ में तिलतिल कर मर रहा है उसकी दृष्टि से भी देखना एक कवि का दायित्व है। अपनी समृद्धि और खुशी के आधार पर ये तो नहीं कहा जा सकता कि सारी दुनिया सुखी है। बाज़ारवादी अमीर और मौकापरस्त शक्तिशाली लोग आम आदमी के साथ क्या क्या करते हैं ये किसी से छिपा नहीं है। राजनैतिक विद्रूपताओं, सामाजिक विडंबनाओं और आर्थिक विसंगतियों के बावजूद एक आम नागरिक संघर्षरत है। बस उसी दृष्टि से गीत को देखा जाना चाहिए। सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2019 at 10:40pm

आ. भाई मिथिलेश जी, वर्तमान संदर्भ में बेहतरीन अभिव्यक्ति हुयी है। कोटि कोटि बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2019 at 7:25pm

आ. भाई मिथिलेश जी, वर्तमान संदर्भ में बेहतरीन अभिव्यक्ति हुयी है। कोटि कोटि बधाई।

Comment by Samar kabeer on March 5, 2019 at 4:07pm

जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,एक मुद्दत के बाद ब्लॉग पर आपकी रचना देखकर कितना प्रसन्न हूँ बता नहीं सकता ।

बहुत ही सुंदर और व्यंगात्मक गीत की सौग़ात लेकर आये हैं आप मंच के लिए,बस मुँह से वाह अपने आप निकल रही है,क्या प्रवाह है,क्या शब्दों का संतुलन है,बहुत ख़ूब, इस प्रस्तुति पर दिल से दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
1 hour ago
Admin posted discussions
22 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service