2122 - 2122 - 2122 - 212
ये उड़ानों का भला फिर हौसला कैसा हुआ।
आपने जो भी दिया हर पंख था कतरा हुआ।
देखिए विज्ञापनों का दौर ऐसा आ गया
काम होने से जरूरी है दिखे होता हुआ।
जब रपट आई तो सारे एक स्वर में कह गए
कुछ हुआ हो ना हुआ हो आंकड़ा अच्छा हुआ।
चूर कर दी शख्सियत यूं जख्म भी दिखता नहीं
ये तरीका चोट करने का बहुत संभला हुआ।
दे रहें हैं आप लेकिन मिल न पाया आज तक
आपका सम्मान भी लगता है बस मिलता हुआ।
खत्म सारे भेदभावों की मुनादी कर रहें
और भीतर श्रेष्ठता का दम्भ है पसरा हुआ।
रोग में जिसको जरूरत थी महज उपचार की
अंग हूँ वो आपका ही काट कर फेंका हुआ।
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(मौलिक व अप्रकाशित) - © मिथिलेश वामनकर
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Comment
बड़ी ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय मिथिलेस जी...हार्दिक बधाई
आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन । बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
आदाब। विभिन्न पहलुओं पर बढ़िया प्रतिक्रिया सहित बढ़िया ग़ज़ल। हार्दिक बधाई आदरणीय वामनकर साहब।
क्या बात है ! क्या बात है !
आदरणीय मिथिलेश जी, गजल की स्पष्ट दशा मुग्ध कर रही है.
देखिए विज्ञापनों का दौर ऐसा आ गया
काम होने से जरूरी है दिखे होता हुआ।
क्या ही सामयिकता उभर आयी है. इस शेर पर बार-बार बधाइयाँ.
कुछ हुआ हो ना हुआ हो आंकड़ा अच्छा हुआ
कुछ हुआ हो या न हो कुछ आँकड़ा अच्छा हुआ .. :-))
बस यों ही मजा-मजा माँ !
चूर कर दी शख्सियत यूं जख्म भी दिखता नहीं
ये तरीका चोट करने का बहुत संभला हुआ। ..
भाई मेरे, आपने किस महीनी से शेर की बुनावट की है ! कथ्य को पूरी सशक्तता से अभिव्यक्ति मिली है.
इस प्रस्तुति पर पुन: हार्दिक बधाइयाँ.
शुभ-शुभ
आदरणीया कल्पना जी, आपको यह प्रयास पसंद आया जानकार ख़ुशी हुई. सराहना और आत्मीय प्रशंसा हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. आपने सही कहा कि मतला के उला और सानी का क्रम बदल गया है. विचार का क्रमिक विकास उसी क्रम में है जैसा आपने सुझाया है. इसे ठीक करता हूँ. सादर
आदरणीय समर कबीर जी, मेरा प्रयास आपको पसंद आया जानकार ख़ुशी हुई. हार्दिक आभार. बहुत समय बाद (लगभग 3 साल बाद) ग़ज़ल कही है. आपकी इस्लाह पर विचार कर रहा हूँ. कुछ सूझते ही सुधार कर लूँगा. सादर
बहुत दिनों के बाद आपकी ग़ज़ल पढने का मौक़ा मिला है | अच्छी ग़ज़ल कही है आपने | बधाई स्वीकारें
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