For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पंख था कतरा हुआ : ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

2122 - 2122 - 2122 - 212

ये उड़ानों का भला फिर हौसला कैसा हुआ।
आपने जो भी दिया हर पंख था कतरा हुआ।

देखिए विज्ञापनों का दौर ऐसा आ गया
काम होने से जरूरी है दिखे होता हुआ।

जब रपट आई तो सारे एक स्वर में कह गए
कुछ हुआ हो ना हुआ हो आंकड़ा अच्छा हुआ।

चूर कर दी शख्सियत यूं जख्म भी दिखता नहीं
ये तरीका चोट करने का बहुत संभला हुआ।

दे रहें हैं आप लेकिन मिल न पाया आज तक
आपका सम्मान भी लगता है बस मिलता हुआ।

खत्म सारे भेदभावों की मुनादी कर रहें
और भीतर श्रेष्ठता का दम्भ है पसरा हुआ।

रोग में जिसको जरूरत थी महज उपचार की
अंग हूँ वो आपका ही काट कर फेंका हुआ।

-------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) - © मिथिलेश वामनकर
-------------------------------------------------------

Views: 696

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 11, 2022 at 6:53pm

बड़ी ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय मिथिलेस जी...हार्दिक बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2022 at 6:50am

आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन । बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 2, 2022 at 10:50pm

आदाब। विभिन्न पहलुओं पर बढ़िया प्रतिक्रिया सहित बढ़िया ग़ज़ल। हार्दिक बधाई आदरणीय वामनकर साहब।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 1, 2022 at 9:38pm
खत्म सारे भेदभावों की मुनादी कर रहे
और भीतर श्रेष्ठता का दम्भ है पसरा हुआ........सटीक....सत्य

एक बेहद उम्दा ग़ज़ल के साधुवाद


सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2022 at 8:59pm

क्या बात है ! क्या बात है !

आदरणीय मिथिलेश जी, गजल की स्पष्ट दशा मुग्ध कर रही है.

देखिए विज्ञापनों का दौर ऐसा आ गया
काम होने से जरूरी है दिखे होता हुआ।

क्या ही सामयिकता उभर आयी है. इस शेर पर बार-बार बधाइयाँ.

कुछ हुआ हो ना हुआ हो आंकड़ा अच्छा हुआ

कुछ हुआ हो या न हो कुछ आँकड़ा अच्छा हुआ .. :-)) 

बस यों ही मजा-मजा माँ ! 

 

चूर कर दी शख्सियत यूं जख्म भी दिखता नहीं
ये तरीका चोट करने का बहुत संभला हुआ। ..   

भाई मेरे, आपने किस महीनी से शेर की बुनावट की है ! कथ्य को पूरी सशक्तता से अभिव्यक्ति मिली है. 

इस प्रस्तुति पर पुन: हार्दिक बधाइयाँ. 

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2022 at 5:39pm

आदरणीया कल्पना जी, आपको यह प्रयास पसंद आया जानकार ख़ुशी हुई. सराहना और आत्मीय प्रशंसा हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2022 at 5:35pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. आपने सही कहा कि मतला के उला और सानी का क्रम बदल गया है. विचार का क्रमिक विकास उसी क्रम में है जैसा आपने सुझाया है. इसे ठीक करता हूँ. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2022 at 5:31pm

आदरणीय समर कबीर जी, मेरा प्रयास आपको पसंद आया जानकार ख़ुशी हुई. हार्दिक आभार. बहुत समय बाद (लगभग 3 साल बाद) ग़ज़ल कही है. आपकी इस्लाह पर विचार कर रहा हूँ. कुछ सूझते ही सुधार कर लूँगा. सादर 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 31, 2022 at 11:23pm

बहुत दिनों के बाद आपकी ग़ज़ल पढने का मौक़ा मिला है | अच्छी ग़ज़ल कही है आपने | बधाई स्वीकारें 

Comment by Chetan Prakash on March 31, 2022 at 4:36pm
आदाब, आ. मिथिलेश वामनकर साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, लेकिन मतला ऊला और सानी में सामन्जस्य के अभाव को रेखांकित करता, क़म से कम मुझे लगा ! कैसा, शब्द मिसरे में यदि प्रश्न की ओर इंगित करता है, तो सानी से इसके जुड़ाव पर प्रश्न उठता है! अगर ऐसा नहीं है तो मेरी समझ से आपको मिसरों को आपस में बदल देना चाहिए, फिर, कदाचित मिसरों की युति अपेक्षाकृत बेहतर हो जाएगी !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
yesterday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
yesterday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
yesterday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service