गीतिका, आधार छंद- वाचिक महालक्ष्मी
(212 212 212)
शब्द अब गीत रचने लगे,
राज़ दिल के बिखरने लगे। /1/
दोस्त दुश्मन सभी दूर हैं
अब स्वयं को समझने लगे। /2/
नौकरी रिश्वतों से मिली,
आज अक्षम चमकने लगे। /3/
ठोकरें दीं सभी ने हमें,
पैर रखकर कुचलने लगे। /4/
प्रेम, दोस्ती रही आज तक,
शक हमें दूर रखने लगे। /5/
युग्म जुड़ कर करेंगे भला,
गीतिका-भाव भरने लगे। /6/
(मौलिक व अप्रकाशित)
_शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी म.प्र.
Comment
युग्म जुड़ कर करेंगे भला,
गीतिका-भाव भरने लगे।---- !!! क्या खूब कही आपने आदरणीय शहज़ाद जी। बधाई काबुल फरमाइयें।
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