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हास्य घनाक्षरी - 1 / गणेश जी बागी

(1)

कुत्ते संग सोते हुए, फोटो एक खिचवा के,
फेस बुक पे झट से, चेंप दी मैडम जी |

लाइक और कमेंट बीच एक श्रीमान ने,
लिख दिया काश होता, कुत्ता मैं मैडम जी |

उल्टा पुल्टा सोचो नहीं, कुछ भी यूँ लिखो नहीं,
ये तो मेरा टॉमी बेटा, बोल दी मैडम जी |

मौका देख चौका मारा, लगे हाथ पूछ डाला,
आप पे गया है या कि, बाप पे मैडम जी ||

(2)

चौकस चौबंद सदा, रहूँ मैं संभल कर,
जबसे पी हिस्सा हुए, ओ बी ओ के दल के ।

गुमसुम खोये-खोये, करे धरें कुछ न ये,
सदा पीछे पड़े रहें, कविता-ग़ज़ल के ।

बच्चे का तो पोटी किया, चड्ढी भी न बदलें जो,
चीख रहें रख दूँ मैं, दुनिया बदल के ।

सुधरी न लत यदि, प्राण दूँगी मार कूदी,
फिर सिर धुनियेगा, खाली हाथ मलके ||

 

 

पिछला पोस्ट : लघुकथा : झूठ / गणेश जी बागी

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Comment

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Comment by Dr.Ajay Khare on January 31, 2013 at 3:54pm

bagi ji aapki hasya rachna ko badhai deta hu 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 31, 2013 at 3:42pm

आदरणीय गणेश जी, आपने बहुत सुन्दर हास्य घनाक्षरी लिखी हैं दोनों बढ़िया हैं , हार्दिक बधाई 

सही है भाई श्रीमती जी का सोचना भी ,

जो डाइपर नहीं बदल सकता , वो दुनिया क्या बदलेगा.......हाहाहा 

Comment by भावना तिवारी on January 31, 2013 at 3:28pm

आप पे गया है या कि, बाप पे मैडम जी ||...Hi ..hi hih ihiiii

Comment by ram shiromani pathak on January 31, 2013 at 2:51pm

बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर sir gggggggggggg maja aa gaya

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