घनाक्षरी
आया मैं तो कुम्भ में कि, पाप कुछ कटायेंगे,
संगत में साधुओं के, पल दो बितायेंगे ।
पूजा और ध्यान संग, मन भी तो शुद्ध होवे,
संगम के तट पर, डुबकी लगायेंगे ।
भीड़-भाड़ मेला-ठेला, गिर पड़ीं बूढ़ी माता,
फौरन उठाया सोचा, पुण्य ही कमायेंगे ।
माता जी भी खुश हुईं, बोल पड़ी धन्य-धन्य,
मुझे जो उठाया- तुझे प्रभु जी उठायेंगे ||
पिछला पोस्ट : हास्य घनाक्षरी - 1 / गणेश जी बागी
Comment
इसका अर्थ मैंने ये समझा है आदरणीय बागी जी -
वृद्ध असहाय जनो की, मदद करे यदि आप,
फल इससे दुगुना मिले,बिना करे ही जाप |
बिना करे ही जाप, पुण्य काम किया तुमने
माता दे आशीष, प्रभु भला किया इसने
होवे न रक्त चाप, हो ना यह जल्दी क्रुद्ध
हो न इसे संताप, बने न असहाय अरु वृद्ध |
सुन्दर काका शैली के हास्य, किन्तु मेरी समझ में गहरे उपरोक्त भाव, हार्दिक बधाई
धन्यवाद बागीजी, काकाजी की स्मृति करवा दी
कहाँ तक उठाएंगे. प्रभु जी.
जय हो सर जी
बधाई.
रचना पसंद आई
bagi ji sunder prasang hasne ko majboor hua badhai
माता जी भी खुश हुईं, बोल पड़ी धन्य-धन्य,
मुझे जो उठाया- तुझे प्रभु जी उठायेंगे.......
बहुत खूब...... :))
हास्य घनाक्षरी के लिए आपको बधाई आदरणीय बागी जी
उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार प्रिय संदीप द्विवेदी जी |
आपको रचना अच्छी लगी, बहुत बहुत आभार प्रिय संदीप भाई |
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी |
आशीर्वाद हेतु आभार आदरणीय विजय निकोर साहब |
हा हा हा हा.. अगली बार से बूढ़ी अम्मा को ज़रा सोच-समझ के उठाइएगा. :)
सफल हास्य घनाक्षरी की प्रस्तुति हेतु बधाई.
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