ज़िन्दग़ी का रंग हर स्वीकार होना चाहिये
जोश हो, पर होश का आधार होना चाहिये ||1||
एक नादाँ आदतन खुशफहमियों में उड़ रहा
कह उसे, उड़ने में भी आचार होना चाहिये ||2||
साहिबी अंदाज़ उसपे सब्ज़चश्मी या खुदा
साहिबों के हाथ अब अख़बार होना चाहिये ||3||
जा गरीबों की गरीबी वोट में तब्दील कर
है सियासी ढंग पर साकार होना चाहिये ||4||
बीड़ियों से बीड़ियाँ जलने लगी हैं गाँव में
हर धुँआती आँख में अंगार होना चाहिये ||5||
झुर्रियाँ कहने लगीं अब वक़्त उसका थक रहा
उम्र के इस मोड़ पे इतवार होना चाहिये ||6||
शब्द होठों पे चढ़े तो आप क्यों चिढ़ने लगे
शब्द का हर होंठ पे अधिकार होना चाहिये ||7||
गो’ ये रातें सर्द हैं पर यार इनमें ताब है
मौसमों में है मज़ा, बस प्यार होना चाहिये ||8||
तुम हुये तो हो गये हम ज़िन्दग़ीवाली ग़ज़ल
अब लगा हर सुर सनम दमदार होना चाहिये ||9||
खैर खाँसी खूँ खुशी पर्दानशीं कब, इश्क़ भी !
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिये ||10||
आपके आजू नहीं तो आपके बाजू सही
देखिये ‘सौरभ’ सभी का यार होना चाहिये ||11||
*******************
--सौरभ
Comment
शब्द होठों पे चढ़े तो आप क्यों चिढ़ने लगे
शब्द का हर होंठ पे अधिकार होना चाहिये ||7||
Very Nice Resp.Sirji,
वाह वाह वाह. एक से बढ़ कर एक शेर. किसी भी शेर को उध्रित कर के दूसरे शेर का अपमान नही करना चाहता. अल्फ़ाज़, भाव, और अनुभव का अद्भुत समन्वय. कोटि कोटि बधाई.
जो कुछ आप देख-पढ़ रही हैं, इसका श्रेय इस मंच को ही जाता है.
सधन्यवाद.
//बीड़ियों से बीड़ियाँ जलने लगी हैं गाँव में
हर धुँआती आँख में अंगार होना चाहिये ||5||//
बहुत जानदार शेर ! वैसे पूरी की पूरी ग़ज़ल ही बहुत शानदार, जानदार व ईमानदार है! आदरणीय भाई सौरभ जी इस हेतु आपको बहुत-बहुत बधाई !
मेरी गैरहाजिरी पर गौर किया आपने, यह जानकर मुझे अपने आप पर गर्व हो रहा है आदरणीय सौरव जी............... बहुत -बहुत आभार बंधुवर
धन्यवाद सतीशजी, आपको मेरा प्रयास भाया. सहयोग बना रहे.
आपकी कुछ दिनों की अनुपस्थिति बहुत दुखदायी रही. आपको हम सभी ’मिस’ किये भाई..!!
झुर्रियाँ कहने लगीं अब वक़्त उसका थक रहा
उम्र के इस मोड़ पे इतवार होना चाहिये ||6||
शब्द होठों पे चढ़े तो आप क्यों चिढ़ने लगे
शब्द का हर होंठ पे अधिकार होना चाहिये ||
बहुत-बहुत शुक्रिया अभिनवजी. सहयोग बना रहे. मुन्तखिब शे’र के लिये अलग़ से शुक्रगुज़ार हूँ.
और भाईजी, अभी-अभी तो ’ककहरा’ शुरु किया है, ’उस्ताद’ जैसे बुलडोजिंग शब्दों से न डराइये. सुझावों-सलाह के लिये, भाईजी, फिर कहाँ जाऊँगा ! :-))))))
हार में मनके जड़े हैं, बानगी कुछ बेबसी
पेश है जो बन सका, स्वीकार होना चाहिये
धन्यवाद, आराधनाजी.
आहा उस्तादाना शायरी की मजबूत मिसाल !!
कमाल की ग़ज़ल !! और इस भाषा शैली के क्या कहने मेरे ग़ालिब की याद हो आई !!
एक शेर चुना है मेरा मोस्ट फेवरिट -
बीड़ियों से बीड़ियाँ जलने लगी हैं गाँव में
हर धुँआती आँख में अंगार होना चाहिये ||5||
हार्दिक बधाई !!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online