[विषम चरण 16 मात्राएँ + यति+ सम चरण 14 मात्राएँ तुकांत पर तीन गुरु (222) सहित]
ओ री सखी नदी तुम भी हो, हुई न तुम वैसी गंदी।
हम सब पर तुम मर मिटती हो, सहकर भी सब पाबंदी।।
धुनाई-धुलाई हर पत्नी की, करते पति बस वस्त्रों सी।
मैल दिखाकर अपने मन का, पिटाई करते जब बच्चों सी।।
*
ताक-झांक बच्चे करते पीछे, दिखे आज बदले पापा।
झाग-दाग़ रिश्तों के छूटे, हृदय 'नदी' का जब नापा।।
दिन छुट्टी का अब ग़ज़ब हुआ, नदी से 'नदी' को जाना।
समय का अजब यह फेर हुआ, मां को पापा ने 'माना'।।
*
बहते जल में बैर धुले, घिसकर घुलें बुराईयां।
मनघुन्ने पति कम ही बोलें, बोलें जब लुगाईयां।।
काम करें जतन संग अपना, नदियों का अपना सपना।
ठहरा पानी सड़ना-मरना, बहना सतत नारी का जुटना।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
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दूसरा अभ्यास :
ओ री सखी नदी तुम भी हो, हुई न तुम वैसी गंदी।
हम सब पर तुम मर मिटती हो, सहकर भी सब पाबंदी।।
धुनाई-धुलाई हर पत्नी की, करते पति बस वस्त्रों सी।
मैल दिखाकर अपने मन का, पिटाई करेंं बच्चों सी।।
*
ताक-झांक बच्चे कर कहते, दिखे आज बदले पापा।
झाग-दाग़ रिश्तों के छूटे, हृदय 'नदी' का जब नापा।।
दिन छुट्टी का अब ग़ज़ब हुआ, नदी से 'नदी' को जाना।
समय का अजब यह फेर हुआ, मां को पापा ने 'माना'।।
*
बहते जल में जो बैर धुले, घिसकर घुलें बुराईयां।
मनघुन्ने पति कम ही बोलें, बोलतींं जब लुगाईयां।।
काम करें जतन संग अपना, नदियों का अपना सपना।
ठहरा पानी सड़ना-मरना, बहती नारी का जुटना।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
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