For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"उन्नति और प्रत्युत्पन्नमति" (लघुकथा)

महिमा दिखने में अतिसुंदर किंतु मासूम थी। उच्च शिक्षा के बाद उच्च स्तरीय नौकरी हासिल करना उस मध्यमवर्गीय के लिए न तो आसानी से संभव था, न ही असंभव। जब दूसरे सक्षम लोग उसको नियंत्रित या 'स्टिअर' कर मनचाही दिशा देने की कोशिश करते तो उसे लगता कि वह पश्चिमी आधुनिकता की चपेट में आ रही है, कुछ समझौते कर कठपुतली सी बनायी या बनवाई जा रही है। आज वह लैपटॉप पर चैटिंग कर आभासी दुनिया के मशविरे लेने को विवश थी; पिता को सच बताने से डरती थी, किंतु 'सहेली सी' मां को भी तो सब कुछ उसने नहीं बताया था! हालांकि शायद मां सब कुछ समझ रही थी, पर चुप और संयत थी; शायद ज़माने के चलन से और पिंजरे में क़ैद अपनी ज़िन्दगी से कुछ सबक़ लेकर, कुछ समझौतावादी रुख़ अख़्तियार कर!
"तू अपनी मां की तरह आदर्शवाद की चादर ओढ़कर पीछे की ओर किसी तहज़ीबी पिंजरे की ओर मत जा!" एक आधुनिक सहेली ने चैटिंग करते समझाया।
"तुम जब अपने उस प्रिय बॉयफ्रेंड को अपना सब कुछ सौंप कर धोखा खा चुकी हो, तो अपने जिस्म के ऊपरी कपड़े कम करने के बाद, निचले छोड़ने पर इतना क्यों सोच रही हो!" उसके मशहूर फोटोग्राफर-पेंटर मित्र ने विशेष निवेदन के साथ चैटिंग में कहा था - "तुम अपने सुंदर तन की महिमा को कैनवास पर या कैमरे में उतरवाना क्यों नहीं चाहतीं? ... या फिर न्यूड-बॉडी-पेंटिंग करवा कर फोटो-सेशन करवा लो!"
महिमा ने एक बार फिर अपने ऊपरी उघड़े तन पर निगाह डाली! परन्तु उसे पहले जैसी ख़ुशी हासिल न हुई! उसने अपनी एक नेक सहेली से चैटिंग पर कहा - "तुम मुझे हमेशा सुंदर परी कहती हो! पर आज मुझे अपना यह शरीर कालिख लगा लगता है! कब तक मॉम से सब कुछ छिपाऊं! उनका पाला-खिलाया फूल मुरझा रहा है! "
उस मनोचिकित्सक सहेली ने मुआमले की नज़ाकत को समझते हुए ऑनलाइन-चैटिंग-जवाब देने के बजाय महिमा को तुरन्त फ़ोन पर ही मशविरा देना उचित समझा।
"मैं जानती हूं कि समय ने तुम्हें अपनी इंद्रियों और मन-मस्तिष्क को काफ़ी हद तक नियंत्रित करना सिखा दिया है! लेकिन उच्च स्तरीय जॉब और ग्लैमर हासिल करने की चाहत और दिलाने वालों की संगत, प्रलोभन और स्वार्थी मशविरों के पिंजरे में तुम व्यर्थ ही फंस रही हो!" फ़ोन पर दूसरी तरफ़ से सिसकियों की आवाज़ आने पर उस सहेली ने कहा - " बी पॉज़िटिव; थिंक पॉज़िटिव! जिस तरह से आंखों में काजल लगाने से उसका सौंदर्य बढ़ जाता है; होठों पर लिपस्टिक लगाने से उनके आकार और सम्मोहन में इजाफ़ा हो जाता है, मेकअप से चेहरे बदल कर असरदार से हो जाते हैं! उसी तरह कम उम्र में प्रेगनेंट और अबॉर्शन के तज़र्बे और उच्च शिक्षा के मेकअप से अब तुम एक ऐसी स्ट्रॉंग युवती हो, जो मर्द जात को समझना-परखना सीख चुकी है! सो अब तुम सशक्त हो हर तरह से! अपनी रुचि की नौकरी चुनो और मां-बाप के दिये संस्कारों को त्यागे बिना नये ज़माने के साथ क़दम मिला कर चलो! सवाल पूरब और पश्चिम के रुख़ का नहीं! सवाल तो तुम्हारे इस मकाम पर अब सामंजस्य का है, डियर!"
"सच कहा तुमने! मुझे ऐसा लगा कि मॉम को सब कुछ बताने पर वो भी मुझे ऐसे ही समझायेंगी! हवाओं और आंधियों और मर्दों की फ़ितरतों के बीच मुझे मज़बूती से खड़ा रहना होगा।"
"वेरी गुड!"
"मेरी मम्मी भी यही महसूस करतीं हैं कि न तो पूरी तरह पूरब की तहज़ीब में ढलो और न ही पूरी तरह पश्चिमी हवाओं में बहो! नई सदी की सशक्त नारी बनो शोषण-बुराइयों से बचकर!" सहेली को धन्यवाद कहते हुए फ़ोन-कॉल समाप्त कर महिमा ने सोशल मीडिया के कुछ मित्रों को अनफ्रेंड और कुछ को ब्लॉक किया और लैपटॉप ऑफ़ कर मन में कुछ संकल्प लिये और स्वयं को पिंजरों से मुक्त महसूस करने लगी।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 606

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2018 at 5:54am

बहुत खूब..आदरणीय

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 22, 2018 at 1:04am

रचना पर समय देकर, अपने विचार/राय सांझा कर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया और ई़द-अल-अद़हा ई़दुज्जुहा/बकरीद) की अग्रिम मुबारकबाद मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब और जनाब मोह़म्मद आरिफ़ साहिब।

दरअसल जब मुझे लगता है कि शब्द/वाक्य कम करने से वह मुझसे सम्प्रेषित नहीं हो सकेगा, जो मैं कहे व अनकहे मैं कहना या कहलवाना चाहता हूँ, तो मैं कसावट नहीं कर पाता। वरिष्ठजन से मार्गदर्शन निवेदित यथासंभव कसावट आदि हेतु।

Comment by Mohammed Arif on August 20, 2018 at 2:44pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                        पश्चिम को अपनाना भी चाहते और बुराई पर आमादा भी रहते हैं ।  पश्चिमी रंग-ढंग का असर सर चढ़कर बोलने लगता तो फिर उसे उतार कर फेंकने पर आमादा हो जाते है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on August 20, 2018 at 2:41pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,लघुकथा अच्छी हुई है लेकिन तवालत ज़ियादा है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"जी बहुत शुक्रिया आदरणीय चेतन प्रकाश जी "
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  अच्छी ग़ज़ल हुई, और बेहतर निखार सकते आप । लेकिन  आ.श्री…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.मिथिलेश वामनकर साहब,  अतिशय आभार आपका, प्रोत्साहन हेतु !"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"देर आयद दुरुस्त आयद,  आ.नीलेश नूर साहब,  मुशायर की रौनक  लौट आयी। बहुत अच्छी ग़ज़ल…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
" ,आ, नीलेशजी कुल मिलाकर बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई,  जनाब!"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार।…"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तितलियों पर अपने खूब पकड़ा है। इस पर मेरा ध्यान नहीं गया। "
8 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service