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'ताटंक छंद अभ्यास'

[विषम चरण 16 मात्राएँ + यति+ सम चरण 14 मात्राएँ तुकांत पर तीन गुरु (222) सहित]

ओ री सखी नदी तुम भी हो, हुई न तुम वैसी गंदी।
हम सब पर तुम मर मिटती हो, सहकर भी सब पाबंदी।।
धुनाई-धुलाई हर पत्नी की, करते पति बस वस्त्रों सी।
मैल दिखाकर अपने मन का, पिटाई करते जब बच्चों सी।।
*
ताक-झांक बच्चे करते पीछे, दिखे आज बदले पापा।
झाग-दाग़ रिश्तों के छूटे, हृदय 'नदी' का जब नापा।।
दिन छुट्टी का अब ग़ज़ब हुआ, नदी से 'नदी' को जाना।
समय का अजब यह फेर हुआ, मां को पापा ने 'माना'।।
*
बहते जल में बैर धुले, घिसकर घुलें बुराईयां।
मनघुन्ने पति कम ही बोलें, बोलें जब लुगाईयां।।
काम करें जतन संग अपना, नदियों का अपना सपना।
ठहरा पानी सड़ना-मरना, बहना सतत नारी का जुटना।।


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on August 22, 2018 at 7:11pm

आदरणीय शेख शाहजाद उस्मानी साहब एक कामयाब कोशिश के लिए दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिये 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 22, 2018 at 12:10pm

ग़ज़ल पर अभ्यास करने पर हिंदी के छंदों में मात्रा गणना के समय समस्या स्वभावतः आ जाती है, इसलिए आपके इस प्रयास में भी ऐसी भूल हो गई है......कुल जमा आपनका प्रेस बहुत सराहनीय है

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 22, 2018 at 1:20am

 आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी, यहां 'धुनाई/धुलाई/पिटाई' शब्दों को सामान्य अर्थों के बजाय मैंने हर महिला पर होने वाले "मानसिक/शारीरिक/आर्थिक"- "शोषण/अन्याय" की ओर इशारा करना चाहा है 'बिम्बों' में।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 22, 2018 at 1:15am

मेरे इस 'ताटंक छंद' अभ्यास पर  समय देकर, अपने विचार/राय सांझा कर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया और ई़द-अल-अद़हा ई़दुज्जुहा/बकरीद) की अग्रिम मुबारकबाद मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब और जनाब मोह़म्मद आरिफ़ साहिब,  जनाब अशोक कुमार रक्ताले साहिब, जनाब बसंंत कुमार शर्मा साहिब, मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा और मुहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा। कृपया नीचे टिप्पणी में मेरे दूसरे अभ्यास पर इस्लाह दीजिएगा। वरिष्ठजन से मार्गदर्शन निवेदित।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 20, 2018 at 8:21pm

अरे वाह! हार्दिक बधाई आपको इस अभ्यास और प्रयास के लिए| हार्दिक शुभकामनाये 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 20, 2018 at 7:56pm

बहुत खूब , सुझाव अनुकरणीय हैं 

Comment by Samar kabeer on August 20, 2018 at 6:46pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

जनाब अशोक रक्ताले जी की बातों का संज्ञान लें ।

Comment by Neelam Upadhyaya on August 20, 2018 at 3:45pm

 आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, नमस्कार।  ताटंक छंद के प्रयास की जितनी प्रशंसा की जाय कम है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 20, 2018 at 2:51pm

आदरणीय शेख़ शहजाद  उस्मानी साहब सादर, ताटंक छंद पर आपका सुंदर प्रयास हुआ है , किन्तु कहीं-कहीं मात्राओं की गणना में चूक हुई है। आपने 16 की जगह 18 मात्राएँ ले लीं हैं  । फिर हर पत्नी की धुनाई- धुलाई ...आपत्तिजनक कथ्य है । देख लें । सादर ।

Comment by Mohammed Arif on August 20, 2018 at 2:24pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                  ताटंक छंद का बहुत ही लाजवाब प्रयास । इस प्रयास की जितनी प्रशंसा की जाय कम है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । बाक़ी गुणीजन मार्गदर्शन देंगे ।

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