"कौन? ... कौन डूब रहा है इस सैलाब में इतने रेस्क्यू ऑपरेशंस के बावजूद?"
"आम आदमी साहिब! आम मतदाता डूब रहा है, उपेक्षा के सैलाब में या फिर अहसानात के सैलाब में... इस चुनावी सैलाब में!"
"रेस्कयू में हम कोई कसर नहीं छोड़ रहे ! धन, नौकरी, छोकरी, योजना, लोन-दान, वीजा-पासपोर्ट, नये-नये बिल-क़ानून, पशु-रक्षा, धार्मिक-स्थल-मुद्दे, मीडिया-कवरेज , वाद-विवाद, पुलिस-समर्पण ... सब कुछ तो लगा दिया उनके लिए उनके हितार्थ! .. और क्या चाहिए!"
"जनता इनको चुनावी-हथकंडे मान रही है, रेस्क्यू नहीं! जीवन-नैया साधने के लिए कारगर टिकाऊ 'लाइफ-जैकिट्स' और 'मज़बूत रस्सियां' चाहिए! ... 'रेस्क्यू' के नाम पर योजनाएं, नये क़ानूनों, लोन्स, मंदिर-मस्जिदों और डिजीटलाईजेशन जैसे प्रलोभन नहीं! .. मतदाता हैं, कोई किसान नहीं!"
"अबे, मतदाता अब किसान जैसा ही है! ... हमें मालूम है कि उसे कैसे टैकिल करना है; कैसे लुभाना और उबारना है!"
" .. और कैसे ख़ुदक़ुशी के लिये मज़बूर करना या करवाना है? है न!"
".. यह चुनावी सैलाब है! तेज़ धारायें चलानी, चलवानी पड़ती हैं आचार संहिता लागू होने के ठीक पहले तक! .. और उसके पहले मतभेद, भय, बहस, अविश्वास, आस्थाओं के 'भूकंप' ट्रिगर करने पड़ते हैं एक दिशा में कोई 'सुनामी' उठाने के लिए, समझे! ... कुछ मरेंगे, तो कुछ सबक़ सीखेंगे! ... और कुछ 'शरणार्थी' बनकर आयेंगे ही हमारे 'दल' में, हमारे 'पक्ष' में!"
"लोकतंत्र में 'यही सब कुछ' राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों के साथ 'आम मतदाता' और 'किसान' भी तो कर सकता हैं न!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
रचना पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, आदरणीय मोह़म्मद आरिफ़ जी, आदरणीय समर कबीर जी और आदरणीया बबीता गुप्ता जी।
बेहतरीन रचना द्वारा वर्तमान व्यवस्था पर करारा प्रहार,बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
बहुत ही विचारोत्तेजक और कटाक्षपूर्ण कथा होने के साथ ही सामयिकता का पुट लिए । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
वाह वाह बहुत ही सुन्दर लिखा आपने । व्यवस्था पर करारी चोट । मुबारक हो सर ।
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