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आदरणीय साहित्यप्रेमी सुधीजनों,
सादर वंदे !
ओपन बुक्स ऑनलाइन यानि ओबीओ के साहित्य-सेवा जीवन के सफलतापूर्वक तीन वर्ष पूर्ण कर लेने के उपलक्ष्य में उत्तराखण्ड के हल्द्वानी स्थित एमआइईटी-कुमाऊँ के परिसर में दिनांक 15 जून 2013 को ओबीओ प्रबन्धन समिति द्वारा "ओ बी ओ विचार-गोष्ठी एवं कवि-सम्मेलन सह मुशायरा" का सफल आयोजन आदरणीय प्रधान संपादक श्री योगराज प्रभाकर जी की अध्यक्षता में सफलता पूर्वक संपन्न हुआ |
"ओ बी ओ विचार गोष्ठी" में सुश्री महिमाश्री जी, श्री अरुण निगम जी, श्रीमति गीतिका वेदिका जी,डॉ० नूतन डिमरी गैरोला जी, श्रीमति राजेश कुमारी जी, डॉ० प्राची सिंह जी, श्री रूप चन्द्र शास्त्री जी, श्री गणेश जी बागी जी , श्री योगराज प्रभाकर जी, श्री सुभाष वर्मा जी, आदि 10 वक्ताओं ने प्रदत्त शीर्षक’साहित्य में अंतर्जाल का योगदान’ पर अपने विचार व विषय के अनुरूप अपने अनुभव सभा में प्रस्तुत किये थे. तो आइये प्रत्येक सप्ताह जानते हैं एक-एक कर उन सभी सदस्यों के संक्षिप्त परिचय के साथ उनके विचार उन्हीं के शब्दों में...
इसी क्रम में आज प्रस्तुत हैं "श्री अरुण निगम" जी का संक्षिप्त परिचय एवं उनके विचार:-
नाम : अरुण कुमार निगम
जन्म : दुर्ग , छत्तीसगढ़
जन्मतिथि : 04.अगस्त 1956
शिक्षा : स्नात्कोत्तर
रुचि : हिंदी और छत्तीसगढ़ी काव्य लेखन ,बाँसुरी वादन, लोक संगीत, पुराने हिंदी फिल्मी गीत और गैर फिल्मी गीत सुनना | प्रकाशन /प्रसारण : अभी तक एक भी पुस्तक का प्रकाशन नहीं | दुर्ग ,राजनांदगाँव ,रायपुर तथा बस्तर के स्थानीय समाचार पत्रों में रचनायें प्रकाशित | सत्तर के दशक में आकाशवाणी रायपुर तथा रेडियो सिलोन से रचनाओं का प्रसारण | भारतीय स्टेट बैंक की आंतरिक वितरण की पत्रिकाओं प्रवाह,आकांक्षा में रचनायें प्रकाशित |
व्यवसाय : प्राम्भ में 6 वर्ष तक शिक्षा विभाग में अध्यापक | तत्पश्चात् सन् 1980 से भारतीय स्टेट बैंक में सेवारत | वर्तमान में भारतीय स्टेट बैंक में चीफ मार्केटिंग एक्ज्यूकेटिव्ह,एम.पी.एस.टी. (जबलपुर) के पद पर कार्यरत |
परिवार : पिता स्व.कोदूराम “दलित” छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय जनकवि जिनका छत्तीसगढ़ी तथा हिंदी पर समान अधिकार रहा, लगभग सभी कवितायें भारतीय छंदों में | माँ श्रीमती सुशीला निगम सेवा निवृत्त शिक्षिका | धर्मपत्नी श्रीमती सपना निगम छत्तीसगढ़ी की कवियित्री तथा गायिका | बड़ा पुत्र डॉ.चैतन्य निगम शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक |मँझला पुत्र डॉ आशीष निगम रेडियोलॉजिस्ट | छोटा पुत्र अभिषेक निगम एम.टेक.में अध्ययनरत तथा एक प्रसिद्ध .रॉक बैंड में लीड गिटारिस्ट | दुर्ग छत्तीसगढ़ में शिवनाथ नदी के किनारे पला-बढ़ा. काव्य प्रतिभा विरासत में मिली | बचपन से साहित्यिक वातावरण | पंद्रह-सोलह वर्ष की आयु से कविता लेखन | मूलत: गीतकार, हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में पद्य लेखन | दुर्ग में रहते तक विभिन्न काव्य-गोष्ठियों में सहभागिता तथा अनेक साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन | अंतर्जाल से सम्बंध – श्री संजीव तिवारी की ई-पत्रिका “गुरतुर-गोठ” में छत्तीसगढ़ी रचनाओं का प्रकाशन | श्री जी.के अवधिया जी ने ब्लॉग बनाना सिखाया | वर्ष 2009 से अपने चार ब्लॉग में पिताजी की और स्वयं की हिंदी / छत्तीसगढ़ी रचनाओं का संकलन | जनवरी 2012 से ओपन बुक्स ऑन लाइन से जुड़ने के बाद सतत सक्रिय सहभागिता| चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता में पुरस्कृत | ओबीओ के सौजन्य से आदरणीय अम्बरीष श्रीवास्तव और आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी के सानिध्य में छंदों में प्रयास प्रारम्भ | आज छंदों में जो कुछ भी लिख रहा हूँ वह ओबीओ की ही देन है |
श्री अरुण निगम जी के विचार उन्हीं के शब्दों में :
यह जो विषय दिया गया “साहित्य में अंतरजाल का महत्त्व” . पहली दृष्टि में मुझे इसका अर्थ समझ में आया उसके हिसाब से कहना चाह रहा था कि साहित्य के प्रचार-प्रसार के माध्यम शुरू से बदलते रहे है.. हमने सुना कि कबीरदास जी ने कभी हाथ में लेखनी नहीं पकड़ी, वे अपने दोहे और अपनी रचनाओं को गा कर पढते थे, गा कर सुनाते थे , उनके जो शिष्य थे, उनके जो समर्थक थे वे संभवतः उनकी रचनाओं को गा कर ही प्रसारित किया करते थे , तब प्रकाशन की सुविधा नहीं थीं ..फिर धीरे धीरे जैसे-जैसे विज्ञान ने प्रगति की . नए-नए साधन आने लगे, पत्रिकाएँ आने लगीं ... जब हम छोटे थे हमारे पिताजी कुछ किताबें ला के देते थे , नंदन ,पराग, चंदामामा, जैसी हमारी उम्र थी वही हमारे लिए साहित्य था.. और वहीं से मन में कविवृत्ति जागी . हमें साहित्य के प्रति लगाव हुआ..शालाओं में जब पढ़ते थे तो उस समय हिंदी हमारे लिए एक भाषा थी, एक कोर्स था पर आज जब देखते हैं , लिखते हैं तो हमारे लिए एक रूचि का क्षेत्र है.. साहित्य के प्रति अभिरुचि इन्हीं साधनों से आई. जबसे अंतरजाल आया तबसे धीरे धीरे पत्रिकाओं और किताबों को खरीदने की आदत समाप्त होती गयी.. बचपन में हम किताब खरीदते थे ..संकलित करने का एक शौक हुआ करता था और शौक के साथ इनको जहाँ पर रखते थे बहुत ही साफ़ सुथरी जगह पर सम्मान के साथ रखते थे, ऐसा लगता था कि इन किताबों के साथ यहाँ पर माँ शारदा विराजमान हैं..हमारे मन में यही भाव जुड़े रहते थे .. और आज जब अंतरजाल आया है तो किताबों को खरीदने का चलन खतम हो गया है ..लेकिन उससे अच्छी बात ये हैं कि जो किताब तब हम खरीद नहीं पाते थे , जो उपलब्ध नहीं हो रही थी आज इंटरनेट पर उपलब्ध हो गयीं हैं .. कोई भी किताब आज हम पढ़ सकते हैं ..अंतरजाल का अध्ययन में एक बहुत अच्छा योगदान रहा है अब ये तो हो गयी साहित्य की बात ,अब दूसरा पक्ष आता है साहित्यकार का .....४० साल से तो मैं लिख रहा हूँ डायरियाँ लिखने का शौक है . लगभग १५-१६ डायरी लिख चुका हूँ .. डायरी में साल में शायद ८-१० रचनाएँ लिख पाता था.. ९० का दशक ऐसा रहा है कि ९० से से २००३ तक बीच में मेरी एक भी डायरी में एक भी पन्ना, एक भी पंक्ति नहीं लिखी है..कारण ये था कि माहौल नहीं मिलता था .. हमारी ऐसी नौकरी थी ...कभी शहर में , कभी गाँव में.....गाँव में साहित्यिक माहौल कभी मिला ही नहीं..लेखक के लिए एक वातावरण बहुत ज़रूरी होता है.. कभी कवि सम्मलेन सुन कर आते थे २-४ कवितायेँ बन जाती थीं अपने आप १५ मिनट में ..यही वातावरण बनाने के साधन थे , और ये साधन सीमित थे..आज आप इन्टरनेट पे देखते हैं तो साहित्य-साधना के लिये बहुत सारे साधन हैं बहुत सारे मंच हैं.. जिनमें ओबीओ एक महत्वपूर्ण मंच है ओबीओ के बारे में पहले कुछ नहीं जानते थे पर हमने कहीं पर देखा ‘चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता’ का ओबीओपर आयोजन है. प्रतियोगिता शब्द हमें आकर्षित किया , हमने सोचा चलो इसमें भाग ले के देखते हैं.. पता चला छंद बद्ध रचनाएँ लिखनी हैं..तब मैं किस तरह लिखता था, अपना व्यक्तिगत अनुभव बता रहा हूँ.. दोहा मतलब ये था कि रामायण में जो दोहे गाये गए हैं वो धुन हमारे दिमाग में बसी हुई रहती थी , उसी धुन को गुनगुनाया और लिख दिया ..स्कूल में पढ़ा था कि दोहे में १३ ,११ मात्रायें होती है, अंत गुरु लघु होता है..पर ये बातें उस स्कूल की पढाई के साथ मैं भूल चुका था.. अब यहाँ ओबीओ में आ कर देखा और समझा कि मात्राएं क्या होती हैं, यहाँ यानि ओबीओ पर एक बहुत अच्छा अवसर मिला. जब मैंने दोहा लिखा और प्राप्त प्रतिक्रियाओं से जाना कि मात्राएं १४ ,१२ हो रही हैं तब ध्यान गया कि मात्राएं 13,11 होनी चाहिए. अब जो दोहे लिख रहा हूँ वो परिष्कृत रूप में आ रहे हैं.. ये सीखने के लिए बहुत अच्छा मंच है.. ओबीओ की तरह कोई और मंच मुझे अभी तक दिखा नहीं .. ब्लॉग में अपनी कवितायेँ हम प्रकाशित तो करते हैं लेकिन उस पर स्तरीय मूल्यांकन हो रहा है या नहीं ये पता नहीं चल पाता. ब्लॉग हमारी पहचान है क्योंकि यहीं से हम अंतरजाल के जरिय्र आप सभी से जुड़े हैं , यह ब्लॉग क्या हुआ मानों हमारी डायरी हुई , उसकी रचनाओं को हमने ब्लॉग पर संकलन करना शुरू किया, शुरुवात में मेरे ब्लॉग में जब लोग आते थे तो अच्छा लगा. मैं भी उनके ब्लॉग पर जाता था ताकि कि लोग मेरे ब्लॉग में आयें ,मेरा ब्लॉग पढ़ें , तो ये प्रक्रिया बहुत लम्बे समय तक चली.. एक समय के बाद लगा कि “बहुत सुन्दर” “सुन्दर रचना” “सुन्दर अभिव्यक्ति” जैसी टिप्पणियाँ आती हैं. किसी ने समझा या नहीं, उसे पढ़ा या नहीं है....समझ में नहीं आता था .क्योंकि ब्लॉग पर आना-जाना एक शिष्टाचार है . उसी शिष्टाचार में मेरा भी वहाँ वहाँ आना-जाना बना रहा.ये सम्बन्ध बने रहे. किंतु मन को संतुष्टि नहीं हुई.
पर ओबीओ में आने के बाद , यदि कुछ गलत लिखा गया हो तो टिप्पणी उस गलती पर की जाती है कि भई यहाँ मात्राओं में दोष है या यह शब्द यहाँ फिट नहीं होता है .. किंतु ब्लॉग में बताया ही नहीं गया कि आपने यहाँ पर गलत लिखा है.. जब तक कोई नहीं बताएगा कि गलती कहाँ है , हम अपने लिखे हुए को ही सही मान कर चलता रहेंगे.मैं विषय से थोड़ा हट कर चल रहा हूँ लेकिन ये अनुभव सारे इंटरनेट के आस पास ही घूम रहे हैं . इस देश में निराला हुए , मैथिली चरण गुप्त हुए , और पहले के काल में जाएँ तो कबीर हुए, रहीम हुए ..ऐसी रचनाएँ आज की पीढ़ी के साथ लगभग खतम होने को थीं लेकिन एक नयी पीढ़ी यहाँ पर जन्मी है , जैसे महिमा जी , अरुण कुमार शर्मा अनंत जी जैसी २० -२२ साल के आयु वर्ग की नई पीढ़ी. इनकी जब रचनाएँ देखते हैं तो बड़ी खुशी होती है कि अपनी धरोहर को सम्हालने वाले कोई आगे आये हैं. सोचता हूँ आज इन्टरनेट नहीं होता तो क्या जो डायरियों में लिखते थे, वह इस तरह से सब लोगों तक पहुँच पाता ? गज़ल का वज़न क्या होता है नहीं मालूम ! दोहों की मात्राएं क्या होती हैं , कुंडलिया किसे कहते हैं , सवैया क्या होता है ..ये अभी की पीढ़ी को नहीं मालूम. हमारा जो पुराना साहित्य है..अंतरजाल से उसके लिए बड़ी संभावनाएं बनती हैं .बाग को हरा रखने के लिए ये नयी पीढ़ी ही काम आयेगी .. इस तरह का मंच इंटरनेट पर बहुत ज़रूरी है .मैं जब से ओबीओ पर आया हूँ , ओबीओ से संलग्न हूँ. यह एक ऐसा मंच है जहाँ पे हमें सीखने को मिलता है , जो भी साहित्यके प्रति रूचि रखने वाले लोग हैं उनके अंदर यदि संभावनाएं हैं , कुछ अच्छा लिखना चाहते हैं उनको यहाँ पर गुरु हैं, सिखाने वाले हैं . ओबीओ एक ऐसी संस्था हो गयी जहाँ पर आप जो लिख रहे है वह परिष्कृत रूप में लोगों तक पहुँचेगा. इससे अच्छा दूसरा मंच हो नहीं सकता और अंतरजाल से अच्छा माध्यम भी हो नहीं सकता. अंत में एक छोटी सी बात और बताते हैं कि इंटरनेट जितना अच्छा है ,उतना बुरा भी है. जो मेरे साथी गण हैं , आदरणीय रक्ताले जी ,आदरणीय गणेश जी ! कहीं न कहीं, कभी न कभी घर में आपको बहुत सारे विरोधाभास भी सहने पड़ते होंगे जैसे – “लगे रहो उसी में और कोई काम नहीं हैं” , “खाना रखा है, ठंडा हो रहा है”, “ भिड़े रहो उसी में, अब निकाल लेना खा लेना”................ ये बातें भी हम सब के घरों में हो रही हैं ..कारण ये है कि समय की कमी .. आज हम ८-९ घंटे अपनी नौकरी को देते हैं उसके बाद का जो समय परिवार को देना चाहिये उसी में कटौती करके इंटरनेट पर बैठ जाते हैं... यहाँ भी संतुलन रखना आवश्यक है. अब मैं अपनी वाणी को यहाँ विराम देता हूँ |
अगले सप्ताह अंक ३ में जानते हैं ओ बी ओ सदस्या श्रीमती गीतिका वेदिका जी का संक्षिप्त परिचय एवं उनके विचार.....
Comment
आदरणीय अरुण भाईजी के बारे में बहुत कुछ सुना. मन भर उठा है. आपकी लखिनी शक्ति त्वरणावेशित ऊर्जस्वी है. आशु-अंकण आपका परिचायक है.
प्रदत्त विषय पर आपका सम्बोधन बहुत कुछ समेटता हुआ है. स्वयं को अभिव्यक्त करता हुआ है.
संदेह नहीं कि आज के साहित्यकारों के जीवन में इण्टरनेट की भूमिका अनमोल हो जाती है. विशेषकर, जब हम यह देखते हैं कि हम में से अधिकांश इसी के माध्यम से जुड़े और सीखने की प्रक्रिया में लग गये हैं. अन्यथा, जंगल में मोर नाचा किसने देखा के हश्र को प्राप्त हो गये होते.
आदरणीय अरुण जी ने जिन वाक्यों या वाक्यांशों को अपने सम्बोधन के आखिर में उद्धृत किया है वे उनके घर से हों, हो सकता है, लेकिन यही कुछ मैंने गणेश भाईजी के घर में भी सुना था. आदरणीय योगराज भाईजी तो अपने आस-पास ऐसा कुछ सुनते ही अपनी आँखें येब्बड़ी कर लेते हैं. कि बस घर में कर्फ़्यू.
और मैं ?.. भाई, अब क्या छिपाना ? निर्लज्जता की सीमा लाँघना इन मायनों में कोई मुझसे सीखे.. :-)))) .. . मेरे घर में ऐसा कोई कुछ कहता-बकता भी है क्या ? पता नहीं .. मुदहुँ आँख कतहुँ कुछ नाहीं.. के तर्ज़ पर मुदहुँ कान सुनहु कुछ नाहीं .. हा हा हा .. .
एक बात अवश्य है, कि, जब हम सभी अपने जीवन का इतना समय जाया कर चुके हैं तो कम ही समय में न सब समेटना है. तो फिर कम्प्रोमाइज तो करना ही पड़ेगा और सुनना भी पड़ेगा. आदरणीय अरुण भाईजी ने दिल खोल कर सबकुछ बहरा दिया है.. :-)))
जय-जय
खुशियाँ ही खुशियाँ मिलें, जनम दिवस दे प्यार ।
ह्रदय के अन्तः स्थल से, भेंट करें स्वीकार ।। आदरणीय गुरुदेव श्री जन्म दिवस की हार्दिक बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं, ईश्वर आपको स्वस्थ रखे, सुखी रखें, दीर्घायु प्रदान करें यही मंगल शुभकामनाएं हैं.
आपके जन्मदिवस पर ओ बी ओ द्वारा आपका संक्षिप्त परिचय एवं आपके विचार प्रस्तुत कर आपको उपहार दिया है, आपके जीवन से जुड़ी तमाम बारीकियों को जानने का मौका मिला यह मेरा सौभाग्य है. आपसे जुड़ने एवं आपसे मिलने का सौभाग्य ओ बी ओ के द्वारा प्राप्त हुआ इस हेतु मैं ओ बी ओ का सदैव आभारी रहूँगा. आपके सानिध्य में ज्ञान की प्राप्ति हो रही है, आपसे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है, आपके द्वारा दिए गए निर्देशों पर चलते चलते छंद,गीत, ग़ज़ल आदि जैसे तैसे लिख रहा हूँ, इसका श्रेय आपको एवं ओ बी ओ को जाता है. आपको विन्रम प्रणाम सादर नमन.
सर्व प्रथम जन्म दिन की हार्दिक बधाई आदरणीय अरुण निगम जी!
आदरणीय एडमिन जी! आपको हार्दिक धन्यवाद,
आपने इन प्रिय क्षणों के पुनरागमन के स्वागत का सुअवसर हम सभी परिजन को प्रदान किया|
प्रथम तो जन्म दिन की मंगल कामनाए, प्रभु आपको इरांतर प्रगति पथ पर अग्रसारित करे-
जन्म दिवस पर आपको, खुशियाँ मिले हजार
मन की बगिया भी रहे, जीवन भर गुलजार |
कृपा करे माँ शारदा, सदा बहे रसधार,
माँ से ही सबको मिले,सच्चा प्यार दुलार |
हल्द्वानी में आपके द्वारा अंतर्जाल के अंतर्गत प्रस्तुत विचारों से और आपकी जीवन विकास यात्रा से अवगत होकर
ख़ुशी हुई और इस उम्र में भी प्रेरणा मिली | मेरी शुभ कानाए स्वीकारे
आदरणीय श्री अरुण जी को प्रथमतः जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें . और एडमिन जी के प्रति भी आभार जो यह क्रम प्रारंभ किया इससे हल्द्वानी की यादें और मुलाकातें ..यादगार सत्र ..सारी यादें ताज़ा हो जाती है | श्री अरुण जी विस्तृत विचार रखे ..बहुत उपयोगी और विमर्श के अनुकूल हार्दिक साधुवाद !
अरुण जी के बारे में आज उनकी लेखन कौशलता के अलावा भी काफी कुछ जानने को मिला .. बासुरी वादन यह तो अच्छा है... अगले किसी आयोजन में बासुरी वादन सुनेंगे ... अरुण जी का कल जन्मदिन है ऐसा ज्ञात हुआ ... अरुण जी को बधाइयाँ और जन्मदिन पर शुभकामनाएं ...
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