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क्षणिकाएँ -2 ---डा० विजय शंकर

गधा ,
वास्तव में उतना गधा
नहीं होता है , जितना
गधे उसे गधा समझते हैं ||

* * * * * * * * * * * * * * * * * *
भैंस के लिए हर रास्ता,हर द्वार ,
हर मंच खुला रहना चाहिए |
बंद करो अकल को बाड़े में ,
वहां पर सख्त पहरा रहना चाहिए ॥

* * * * * * * * * * * * * * * * * *
उल्लू बनाइँग , उल्लू बनाइँग ,
काहे को उल्लू बनाइँग ,
कृपया कउनों के उल्लू न बनाइँग
आप जेहि के उल्लू बनाइँग
वही लक्ष्मी के लइके
लॉन्गड्राइव पे निकल जाईं ||

* * * * * * * * * * * * * * * * * *

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Views: 504

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Comment by Dr. Vijai Shanker on September 5, 2014 at 9:17pm

आदरणीय महिमा श्री जी, रचना को स्वीकार करने लिए धन्यवाद ,

Comment by MAHIMA SHREE on September 5, 2014 at 4:27pm

हाहा हा ..सर आपकी क्षणिकाएं कमाल की हैं .. व्यंग्य के साथ हास्य का जबरदस्त तड़का..और एक नया उदाहरण भी .. हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 4, 2014 at 11:14pm
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी , व्यंग ही तो है ,कुछ सच , कुछ हास्य , आपने स्वीकार किया ,धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 4, 2014 at 11:09pm
आदरणीय हरि बल्लभ शर्मा जी , कुछ यही मिलता आ रहा है हमें , व्यंग ही तो है आपने स्वीकार किया ,धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 4, 2014 at 11:06pm
कुछ सच , कुछ मजाक , आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , आपने स्वीकार किया , आभार , सादर .
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 4, 2014 at 10:38pm

आदरणीय विजय भाई, 

कम शब्दों में बड़ी बात कह दी , व्यंग्य भी है। हार्दिक बधाई।   

Comment by harivallabh sharma on September 4, 2014 at 1:42pm

हर स्वाद की उत्तम क्षणिकाएं...बधाई आपको.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 4, 2014 at 12:53pm

विजय सर

इन छणिकाओ की कुछ बाते अद्भुत है i जैसे - गधे उसे गधा समझते हैं/बंद करो अकल को बाड़े में ,
वहां पर सख्त पहरा रहना चाहिए/वही लक्ष्मी के लइके लॉन्ग-ड्राइव पे निकल जाईंग i मजाहिया है i सादर i

 

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