Comment
आ० उस्मानी जी , आपने रूपमाला छंद में रचना की और शीर्षक में गीतिका लिखा जबकि गीतिका एक अलग छंद है . दूसरी बात रूपमाला में चार चरण होते है और दो दो पदों की तुकांतता बनती है आपके छंद पाँच से आठ में दो पदों की तुकान्तता नहीं है . बेशक भाव अच्छे है , थोड़े से प्रयास से आप छंद सिद्ध कर लेंगे . सादर.
रूपमाला छंद आधारित गजल का सुंदर प्रयास हुआ है श्री शेख शहजाद भाई - इसमें एक ही रचना में प्रथम तीन युग्म तो मुखड़े ही है | कुछ जगह मामुल्ली परिवर्तन से लय भंग सुधरी जा सकती है -
चार दिन की चाँदनी है, चार दिन का प्यार,
प्यार का बीमार कहता, भावना व्यापार।
[1]
आज हम त्योहार पर ही, बांटते हैं प्यार,
काश हम हर 'वार' को ही, बांटते हर बार।
[2]
काश उन्हें पूछते हम, बेचते जो प्यार, - काश हम पूछें उन्हें भी, बेचते जो प्यार
झेलते तन बेचकर ही, रोज़ अत्याचार।
लाजवाब रचना है बहुत बहुत बधाई आपको
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online