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जयकरी छंद पर सुंदर प्रयास के लिए हार्दिक बधाई श्री शेख शहजाद भाई | यह अवश्य ही की कई जगह लय भंग है | अतः थोड़ा समय और दे - जैसे देखे -
करे क्यों ख़ुदकुशी से प्यार, - ख़ुदकुशी से करे क्यों प्यार,
प्यार ख़ुद क्यों न बांटे यार, - प्यार स्वयं ही बाँटे यार |
होता क्या बिन बांटे प्राप्त, - मिलता क्या बिन बाँटे प्राप्त
करे .... हीनता .... बंटाधार। - करे हीनता बन्टाधार ||
आ० उस्मानी जी आपने मात्रिक विन्यास निभाने की कोशिश की है किन्तु प्रवाह अधिकतर बाधित है ;'शिक्षा का कराते व्यापार' में तो मात्रा भी बढ़ गयी है . मैं आपकी कविता की कुछ पंक्तियो मे जयकारी की लय एवं प्रवाह लाने का प्रयास करता हूँ .
रहो सोचते तुम मत आज
करना है जो कर लो काज
बात दूसरो की मत मान
बस अपने ही मन की जान ---हर गंगा
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