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रंग बदलती दुनिया (लघुकथा) ['रंग' संदर्भित- 2] /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

जितने मुँह उतनी बातें । ख़ुशख़बरी सुनकर जिन लोगों ने असीम बधाइयां और शुभकामनाएँ व्यक्त कीं थीं, अब उनकी अभिव्यक्तियां रंग बदलने लगी थीं।

कुछ ईर्ष्या के, तो कुछ शंकाओं के, और कुछ हीन भावनाओं के , तो कुछ भविष्य की योजनाओं या 'जुगाड़' जैसे लोभ के रंगों से रंगे बोल सुनायी दे रहे थे। जिन्होंने मीठा मुँह कराया था, अब वे कुछ मीठे सपने देखने लगे थे।

मामला यह था कि एक मामूली रिक्शे वाले की चौथी संतान, इकलौता बेटा आइ. ए. एस. अफ़सर बन गया था।
वह माँ-बाप, बहिनों, दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों सबके व्यवहार से अचंभित हो रहा था।

दादा जी द्वारा पहले से तय किए गए रिश्ते ख़ुशी से झूम रहे थे लेकिन अल्प शिक्षित भावी पत्नी जितनी प्रसन्न थी, उतनी ही अपने भविष्य को लेकर अब सशंकित भी थी।


(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2016 at 1:48am

शंका जायज थी ,सुन्दर प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई आ.शेख शहज़ाद उस्मानी जी !सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 30, 2016 at 9:12pm

जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी साहिब , वाह   अचानक रंग कैसे बदलते हैं , लघु कथा ने साबित कर दिया  ... बेहतर प्रस्तुति के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

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