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आदरणीय समर सर बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुयी है आपकी ग़ज़लों से नित नया सीखने को मिलता है इस रचना के ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर
सबसे पहले तो इस हकीर की गुजारिश पर ज़हमते सुखन कुबूल फरमाने के लिए तह-ए-दिल से आपका शुकरगुज़ार हूँ मोहतरम आली जनाब समर कबीर साहिबI आपकी ज़रखेज़ क़लम की तारीफ में अलफ़ाज़ नही ढूँढ पा रहा हूँ, कितनी आसानी और सादगी से ऐसे आला पाये के अशआर कह जाना, बस आप ही के बस की बात हैI बहुत ही मुरस्सा ग़ज़ल हुई है, हर शेअर एक दूसरे से बढ़ चढ़कर हुआ हैI शेअर दर शेअर दाद और मुबारकबाद कबूल फरमाएँI
वाह ..अब बेहतर हो गया मिसरा
सादर
वाह वाह...आ. समर सर ,
फिर से बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है ....
ग़ज़ल को पेश करके भाग जाना... यहाँ को खल रहा है ...
.
सादर
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