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"औरत सी ज़मीन और जमीर" - [लघु कथा] 21 / _शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"जिठानी तो बस फसल कटने पे अपना हिस्सा माँगने लगती हैं, खुद शहर की हो गई, हमें बाप-दादाओं की खेती के काम तो चलाना ही है!"- खेत पर हल जोतते हुए माथे का पसीना पोंछ कर सावित्री ने देवरानी मंगला से कहा।

"मर्दों में वो कुव्वत रही नहीं, तो बेटों का मन कैसे लगे ऐसी खेती में !"- मंगला ने एक हाथ से पल्लू ठीक करते हुए अपने घर के मर्दों और ज़मीन के हालात पर कटाक्ष किया।

"लेकिन एक बात तो मानना पड़ेगी, गाँव छोड़के शहर में भले वो अभी झुग्गी झोपड़ी में रह रही है, लेकिन वो अपने बेटों की ज़िन्दगी एक दिन संवार ही देगी, ज़िद की पक्की है वो !"

"और क्या, जब मर्द मन हार के हाथ पे हाथ रखके बैठ जाये, तो औरत ही कुछ कर गुजरे !" मंगला के स्वर उग्र से हो रहे थे- "मर्दों को तो बस औरत को ज़मीन की तरह रौंदना आता है जब तलक काम कर जाये ! वैसइ जे ज़मीन, जब तलक साथ दे जाये ? खेती में घाटा हो जाये, तो ख़ुदकुशी की सूझती है !"

खेत पर जुताई करते हुए इन दोनों की बातें सुनकर पीछे से सावित्री के बेटे ने कहा- "अरे, ख़ुदकुशी तो वो करे, जिसका जमीर कमज़ोर होय ! ताई शहर में तरक्की करे या न करे, तुम दोनों का जमीर ,हमारा जमीर, खेती और तरक्की सब सही करा देगा !"

(मौलिक व अप्रकाशित)
24-10-2015

Views: 515

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 5, 2015 at 12:13pm
बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सतविंदर कुमार जी हौसला अफज़ाई करने के लिए।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 27, 2015 at 6:15am

sunder ....mardon ki kamjori pr behtrin ktaksh ....bdhai aadrniy

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2015 at 9:51pm
अपना अमूल्य समय मेरी रचना और टिप्पणी करने में देकर मुझे असीम प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया Pratibha Pandey जी।
Comment by pratibha pande on October 26, 2015 at 8:18pm

//"और क्या, जब मर्द मन हार के हाथ पे हाथ रखके बैठ जाये, तो औरत ही कुछ कर गुजरे !" मंगला के स्वर उग्र से हो रहे थे- "मर्दों को तो बस औरत को ज़मीन की तरह रौंदना आता है जब तलक काम कर जाये ! वैसइ जे ज़मीन, जब तलक साथ दे जाये ? खेती में घाटा हो जाये, तो ख़ुदकुशी की सूझती है !"//  सही है ,औरत के निश्चय और मानसिक ताकत को अक्सर आदमी कम आंकने की गलती कर बैठता है ,   शिल्प कसावट लिए है ,मर्म सामयिक है ,बधाई आपको आदरणीय उस्मानी जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2015 at 6:53pm
मेरी रचना पर उपस्थित हो कर प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया कान्ता राय जी
Comment by kanta roy on October 26, 2015 at 6:12pm

बहुत खूब लघुकथा का ताना  -बाना रचा है आपने आदरणीय शेख शहज़ाद जी।  बधाई हो 

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