212 – 212 – 212 – 212 ग़ज़ल
किस तरह आप से मैं कहूं प्यार है
जिक्र से ही हुआ दिल जो गुलज़ार है
आपका साथ है और क्या चाहिए
आप ही का बना दिल तलबगार है
जान लो तुम मुहब्बत तो है इक बला
इस से बचना बड़ा ही तो दुशवार है
रोग उसको अचानक ही समझो लगा
अब बना घूमता वो तो अख़बार है
जब हकीकत समझ आई तो देर थी
जो हुआ सो हुआ अब तो इकरार है
हुस्न ने लूट लाखों लिए सोच कर
हो गया इक नया जख्म सरकार है
मुनीश “तन्हा” नादौन 9882892447
मौलिक व् अप्रकाशित
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अवांछित ही, भी, तो जैसे शब्दों को मिसरों में न रहने दें. ये भर्ती के माने जाते हैं. ग़ज़ल में शब्द भर्ती के हुए तो ग़ज़ल कमज़ोर हो जाती है. बाकी तो आपका प्रयास आश्वस्त कर रहा है, आदरणीय मुनीश भाई.
इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय
आदरणीय सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
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