वजन : 2122 1212 22
वक़्त किसका गुलाम होता है
कब कहाँ किसके नाम होता है
कल तलक जिससे था गिला तुमको
आज किस्सा तमाम होता है
खास है जो मुआमला अपना
घर से निकला तो आम होता है
आज जग में सिया नहीं मिलती
औ’ किताबों में राम होता है
चिलमनो में मुहब्बतें कल थी
अब तमाशा ये आम होता है
अश्क कल दर्द के जो पीते थे
हाथ में आज जाम होता है
रास्ते तो करीब आ जाएं
दूर कितना मुकाम होता है
रंजिशे तुम जहां कहीं पालो
मौन उस पर विराम होता है
‘राज’ ख्वाबों में ही नहीं मिलती
रूबरू अब सलाम होता है
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Comment
अभिषेक कुमार झा जी आपको मक्ते का शेर पसंद आया इसके लिए हार्दिक आभार आपका |
ब्रजेश नीरज जी दिल से आभार आपका, काफी दिनों बाद ओ बी ओ पर दिखाई दिए |
आदरणीय वीनस जी ग़ज़ल को आपकी हाज़िरी से सकून मिला आपकी सराहना पाकर ग़ज़ल धन्य हुई इस होंसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
वाह वा शानदार ग़ज़ल हुई है ...
मजा आ गया
सबसे अच्छी बात यह है कि कलेवर में रवायत है मगर जब ज़रा सा आगे बढते हैं तो नए अर्थ के साथ ग़ज़ल जदीद लहजे में सामने आ खड़ी होती है
घिसे पिटे काफियों के साथ जब कोई इस तरह चौंकाने वाला कलाम पेश कर देता है दिल से दुआएं निकलती हैं
यही तो ग़ज़ल की खूबसूरती है
कामयाब ग़ज़ल के एक एक शेर के लिए बार बार बाराम्बार दाद क़ुबूल करें ....
निखर कर तो अशआर और चमकने लगे हैं
वाह आदरणीया! बहुत सुन्दर! विलम्ब से आई मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें!
आदरणीय सौरभ जी बहुत ही अच्छा लगा ग़ज़ल पर आपने दुबारा अपने विचार प्रस्तुत किये कहते हैं न जितनी हिना सूखती है उतना ही रंग छोडती है लेखन भी एक साधना है जिसमे पल पल कुछ तथ्य स्पष्ट होते जाते हैं और आगे की राह स्पष्ट होती जाती है लेखक को आत्म संतुष्टि भी तभी होती है जब उसकी बात खुल कर पाठक के दिल तक पंहुचे मुझे वो संतुष्टि कुछ कुछ इस रचना से मिल रही है इस होंसला अफजाई के लिए पुनः हार्दिक आभार।
इसमें शक नहीं कि संवेदशीलता ही रचनाकर्म का मूल है लेकिन पाठकों के मन-मस्तिष्क को संवेदित वही रचना करती है जो यथोचित रूप से संप्रेष्य हो, जिनमें शब्द और भाव के निर्वहन में मान्य संतुलन का उचित प्रभाव हो. शब्द-साधना एक तपस है जो व्याकरण सम्मत विन्दुओं के सापेक्ष तो होता ही है, भाव के उन्नयन हेतु आधार भूमि भी तैयार करता है.
आदरणीया राजेश कुमारी जी, कतिपय परिवर्तनों पर आपकी स्वीकृति से प्रस्तुत ग़ज़ल यथोचित समृद्ध हो गयी है.
आगे आपकी ग़ज़लें इन्हीं विन्दुओं को मानक बना कर उत्तरोत्तर पगती जायेंगीं.
आपकी इस प्रतुति को मेरी पुनः बधाइयाँ.
सादर शुभकामनाएँ.
केवल प्रसाद जी तहे दिल से शुक्रिया |
आ0 राजेश कुमारी जी, लाजवाब और शानदार प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
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